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________________ ११२ आदर्श जीवन । andhram.nnNAMAAAAnna अवाक रह गये । उन्होंने भक्तिभरे शब्दोंमें कहा:" महाराज भूल हुई । क्षमा करें। ढौंगी साधुओंसे इतना मन खराब होगया था कि, मैं अच्छे साधुओंकी कल्पना भी नहीं कर सकता था। हुक्म दीजिए कि मैं आपके लिए भोजनका प्रबंध करूँ । मैं आपको जिमाकर धन्य होऊँगा।" नौकरको पुकार कर कहा:-" यहाँ एक बत्ती ले आ।" ___ आप मुस्कुराये और बोले:-" पंडितजी ! मैं पहले ही कह चुका हूँ कि, हम एक घरका आहार नहीं लेते, रातमें तो हम स्पर्श भी नहीं करते, रातमें चिराग भी नहीं जलवा सकते " इसके बाद पंडितजी जिस कथाको सुनाते थे उसके उस दिनके व्याख्यानकी आपने चर्चा इस ढंगसे की कि पंडितजीको उस दिनकी कथामें की हुई भूलें भी मालूम हो गई। उन्होंने अपनी भूलें स्वीकार करते हुए कहा:--" महाराज ! हम तो पेट भरनेके लिए यह कथा करते हैं । हमसे भूल हो ही जाती है " फिर भटजी भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अपने घर चले गये । वहाँसे आप डफरवाल आदि गाँवोंको पावन करते हुए, सनखतरा पधारे । एक महीना वहीं रहे। सनखतरेसे विहार करके आप नारोवाल पधारे । वहाँ धर्मकी बड़ी प्रभावना हुई। वहाँ एक भव्य जीवको आपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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