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________________ १०६ आदर्श जीवन । ArnwwwANAM एक थे । जातिके क्षत्रिय थे पक्के सनातन धर्मी थे। लोग उन्हें सनातन धर्मका स्तंभ कहते थे । उनपर आपका ऐसा प्रभाव पड़ा कि, वे नियमित रूपसे अपने मित्रों सहित व्याख्या-' नमें आते और सार्वभौम धर्मका उपदेश सुन आनंदित होते। ___ एक सिक्ख सरदार कर्तारसिंहजी वहाँ पोस्ट और तार मास्टर थे। उन्होंने भी आपकी तारीफ सुनी। वे एक दिन व्याख्यान सुनने चले गये । व्याख्यान सुनकर वे इतने प्रसन्न हुए कि दूसरे दिनसे व्याख्यानके समय सकुटुंब आने लगे और बड़ी ही श्रद्धा और भक्तिसे धर्मोपदेश सुनने लगे। पन्द्रह बीस दिन रहनेके बाद आप रावलपिंडीकी तरफ जानेको तैयार हुए। शहर भरमें इस बातके फैलते ही उदासी छा गई। जब आखिरी दिनका व्याख्यान समाप्त हुआतब सर्दार कर्तारसिंहजी आदि श्रद्धालु जनोंने प्रार्थना की कि, आप एक महीना यहीं समाप्त करें। __ हमारे चरित्रनायकमें एक बहुत बड़ा गुण है कि आप अपनेसे वृद्ध साधुओंका बड़ा मान रखते हैं। यह गुण प्रसिद्धि पाये हुए लोगोंमें बहुत ही कम होता है । आप विहार करना न करना आदि बातें अपनेसे वृद्ध साधुओंकी इच्छानुसार ही किया करते हैं, उन्हें सदा पूज्य समझते हैं और वे नाराज न हों इस बातका खयाल रखते हैं। अतः आपने फर्माया:-"यहाँ रहना न रहनाश्रीबाबाजी महाराज श्री कुशलविजयजीके हाथकी बात है। मैं तो उनका आज्ञापालक हूँ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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