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________________ आदर्श जीवन । १०७ - सरदारजी बाबाजीकी सेवामें उपस्थित हुए। बाबाजीने फर्माया कि, “ आपका धर्मराग प्रशसनीय है मगर आगेके गाँवोंके लोगोंको भी तो लाभ पहुँचाना चाहिए "। सर्दारजी वगैराने इस बातपर ध्यान नहीं दिया । बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी बैठे रहे । बाबाजीने कहा:--" सरदारजी छोटे छोटे बच्चे सवेरेसे भूखे हैं। पोस्टकी थैली बंद पड़ी है। लोग अपने पत्र पानेके लिए व्याकुल हो रहे हैं।" सरदारजीने पोस्ट ऑफिसकी तालियाँ बाबाजी महाराजके सामने डाल दी और कहा:-"यदि आपकी इच्छा हो तो बच्चोंको खिलाइए और लोगोंकी व्याकुलता मिटाइए, वरना हम तो यहीं बैठे हैं।" __ आखिरकार बाबाजीने आपसे पूछा:-" बल्लभविजयजी ! क्या कहते हो ?" आपने उत्तर दिया:-" आप मालिक हैं।" अगत्या बाबाजीने महीना वहीं पूरा करनेकी अनुमति दे दी। लोग प्रसन्नताके साथ जयजयकार मनाते चले गये । एक महीना समाप्त होनेपर आप वहाँसे गुरुवियोग-दुःखसे उदास बने हुए लोगोंको धीरज बँधाते हुए रवाना हुए। रामनगरसे विहार कर आप पुनः अकालगढ़ पहुँचे । आपने पन्द्रह दिन तक वहाँके लोगोंको धर्मामृत पान कराया। यहाँपर बड़ोदानिवासी आपकी मासीके पुत्र भाई, जौहरी नगीन भाई और अहमदाबादनिवासी जौहरी हरिभाई छोटालाल आपके दर्शनार्थ आये थे । इन लोगोंकोयह देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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