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आदर्श जीवन ।
मगर पीछेसे वह बंद होगया । उस फंडकी जितनी रकम जमा हुई थी वह दो छात्रोंको पढ़ानेमें खर्च की गई । वे दोनों विद्वान होकर आज जैन समाजकी-जैनधर्मकी सेवा कर रहे हैं । वे विद्वान हैं वेदान्ताचार्य पं.ब्रजलालजी और व्याकरण, न्याया
चार्य पं. सुखलालजी। यदि 'पाई फंड' चलता रहता तो उसके द्वारा कितना काम हो सकता था इसका अनुमान सहजहीमें किया जा सकता है। मगर ज्ञानी महाराजने ज्ञानमें देखा था वैसा हुआ । आज कॉलेज नहीं तो भी उसके स्थानमें एक गुरुकुल तो स्थापित हो ही गया है। (५) श्री आत्मानंद जैनपत्रिकाका प्रकाशन करना ।
यह मासिक पत्रिका कई बरसोंतक बाबू जसवंत
रायजी जैनीके संपादकत्वमें चलती रही थी। आचार्यश्रीके स्वर्गारोहणके बाद व्याख्यान वाँचना अन्य साधुओंको पढ़ाना, पंजाबके क्षेत्रोंकी सार सम्भाल लेना आदि सारा ही भार चारों तरफसे आप ही पर आ पड़ा। आपको गुरुवियोगका दुःख था, उस पर भी आपकी उमर छोटी थी। ऐसी दशामें गुरुवियोगसे विव्हल बने हुए श्रीसंघके चित्तको स्थिर करना और आचार्यश्रीके अभावमें प्रति पक्षियोंके किये हुए आक्रमणोंका उत्तर देना आपके लिए अत्यंत कष्टसाध्य काम था; मगर आपने जिस सावधानीसे कष्ट सहनकर
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