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आदर्श जीवन।
(१) आत्म संवत् प्रारंभ करना । यह संवत् बराबर चल
(२) आचार्यश्रीका समाधि मंदिर बनवाना । मंदिरकी
नींव सं.१९५३ आत्मसंवत १ में पड़ी। मंदिर तैयार हो जाने पर सं. १९६५ आत्म संवत १२ वैशाख सुदी ६ को चरणस्थापना-समाधिमंदिरकी प्रतिष्ठा हुई। इस मंदिरका दूसरा नाम आत्मानंद जैनभवन है। इसी भवनमें अभी सं.१९८१ आत्म सं. २९ माघसुदी ६ शुक्रवारके दिन हमारे चरित्रनायकके हाथसे 'श्रीआत्मानंदजैनगुरुकुल पंजाब ' की
स्थापना हुई। (३)'श्री आत्मानंदजैनसभा' स्थापन करना। इस
नामकी सभाएँ पंजाबके प्रायः सभी शहरों और कस्बोंमें स्थापित हैं। गुजरातमें भी हैं। सारी सभा
ओंके कार्यको केन्द्रीभूत करनेके लिए-' श्रीआत्मानंद जैनमहासभा पंजाब की भी स्थापना हो
चुकी है। (४) पाठशालाएँ स्थापित करना । अनेक स्थानोंमें
आत्मानंद जैन पाठशालाएँ चल रही हैं। श्रीआत्मानंद जैनमहाविद्यालय (जैन कॉलेज) स्थापित करानेका विचार भी किया गया था । उसके लिए 'पाइ फंड ' नामका एक फंड जारी किया गया।
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