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________________ १०२ आदर्श जीवन। (१) आत्म संवत् प्रारंभ करना । यह संवत् बराबर चल (२) आचार्यश्रीका समाधि मंदिर बनवाना । मंदिरकी नींव सं.१९५३ आत्मसंवत १ में पड़ी। मंदिर तैयार हो जाने पर सं. १९६५ आत्म संवत १२ वैशाख सुदी ६ को चरणस्थापना-समाधिमंदिरकी प्रतिष्ठा हुई। इस मंदिरका दूसरा नाम आत्मानंद जैनभवन है। इसी भवनमें अभी सं.१९८१ आत्म सं. २९ माघसुदी ६ शुक्रवारके दिन हमारे चरित्रनायकके हाथसे 'श्रीआत्मानंदजैनगुरुकुल पंजाब ' की स्थापना हुई। (३)'श्री आत्मानंदजैनसभा' स्थापन करना। इस नामकी सभाएँ पंजाबके प्रायः सभी शहरों और कस्बोंमें स्थापित हैं। गुजरातमें भी हैं। सारी सभा ओंके कार्यको केन्द्रीभूत करनेके लिए-' श्रीआत्मानंद जैनमहासभा पंजाब की भी स्थापना हो चुकी है। (४) पाठशालाएँ स्थापित करना । अनेक स्थानोंमें आत्मानंद जैन पाठशालाएँ चल रही हैं। श्रीआत्मानंद जैनमहाविद्यालय (जैन कॉलेज) स्थापित करानेका विचार भी किया गया था । उसके लिए 'पाइ फंड ' नामका एक फंड जारी किया गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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