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आदर्श जीवन ।
दिन दिन कहते ज्ञान पढ़ाऊँ, चुप रह तुझको लड्ड खिलाऊँ । जैसे मात बालक पतयावे, तिम तुमे काहे कीजो जी ॥ हे०॥२॥ दीन अनाथ हुं चेरो तेरो, ध्यान धरूँ मैं निशदिन तेरो । अब तो काज करो गुरु मेरो, मोहे दीदार दीजो जी ॥ हे ०॥३॥ करो सहाय भवोदधि तारो, सेवक जनको पार उतारो । बार बार विनती यह मोरी, 'वल्लभ' तार लीजो जी ॥ हे०॥४॥
गजल-( चाल रास धारियोंकी ) बिना गुरुराजके देखे, मेरे दिल बेकरारी है ॥ अंचलि ॥ आनंद करते जगतजनको, वयण सत सत सुना करके ॥ बि० ॥ तनु तस शांत होया है, पाया जिनें दर्श आकरके ॥ बि० ॥ मानो सुर सूरि आये थे, भुवि नरदेह धर करके ॥ बि० ॥ राजा अरु रंक सम गिनते, निजातम रूप सम करके ॥ बि०॥ महा उपकार जग करते, तनु फनाह समझ करके ॥ बि० ॥ जीया — वल्लभ' चाहता है, नमन कर पाँव पड़ करके॥ बि० ॥
उस वर्ष यानी सं० १९५३ का दसवाँ चौमासा आपने गुजराँवालाहीमें किया। यहाँ आपने एक ऐसी योजना तैयार की कि जिसको आचरणमें लानेसे स्वर्गीय आचार्यश्रीकी स्मृति सदा कायम रहे । फिर इस योजनाको व्यवहारमें लानेका आपने पंजाबके श्रीसंघको उपदेश दिया। पंजाबका संघ उसे व्यवहारमें लाया । वह योजना यह थी
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