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आदर्श जीवन ।
आगे इस चौमासेके पहले तो न जा सकेंगे। यदि मेरी बात झूठ निकले तो कहना बूढ़ा बड़ा लबाड़ था ।" __ अब आपके विचारोंमें एक परिवर्तन उपस्थित हुआ। आप सोचने लगे, महाराज साहबकी आज्ञा पाँच बरसमें लौट आने की है। मगर यदि बीमार हो जाऊँगा तो क्या होगा ? विद्या विना तो रहूँगा ही ऊपरसे आचार्यश्रीकी छत्रछाया और कृपासे भी वंचित रहूँगा । गुरुआज्ञाभंग करनेका दोष भी सिरपर आयगा । इस औदारिक शरीरका भरोसा ही क्या है ? यह कौन जानता था कि, राजविजयजी महाराजकी तबीअत बिगड़ जायगी आर हम एक महीना अंबालेहीमें रहना पड़ेगा। ___ इधर आपके मनमें दुविधा उत्पन्न हुई उधर गुजरातके भिन्न भिन्न स्थानोंसे आपके पालीतानेजानेके समाचार सुनकर पत्र आने लगे। उन सबका आशय यही था कि, " आपके गुजरातकी तरफ़ आनेके समाचार सुनकर हमें आनंद हुआ; क्यों कि कई बरसोंके बाद आपके गुजरातको दर्शन होंगे। मगर आनंदसे ज्याद दुःख हमें यह समझकर हुआ कि साक्षात् कल्पवृक्षके समान, मन-वांछित फल देनेवाले, ज्ञानसागर, गुणके आगार, परमगीतार्थ, युगप्रधानके तुल्य १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरिजी महाराजके चरणोंमें गुरुकुलवासमें अध्ययन करना छोड़कर आप इधर आनेको तैयार हुए हैं। देखना भूल कर भी किसीकी उल्टी सलाह न मान
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