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आदर्श जीवन
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भेजा उसमें लिखा था कि, “१०८ श्रीराजविजयजी महाराजका शरीर अशक्त है। ऐसी हालतमें अगर हठ करके यहाँसे मुनिमहाराज विहार कर जायँगे तो मार्गमें विशेष तकलीफ हो जानेकी संभावना है। इस लिए आप उन्हें यहीं चौमासा करनेकी आज्ञा करें । हम उन्हें यहाँसे विहार तो हरगिज न करने देगें; क्योंकि ऐसी हालतमें उनके यहाँसे विहार कर जानेसे हमारे शहरकी बदनामी होगी । आप अवसरके जानकार हैं इसलिए आपका आज्ञापत्र आजानेसे हमें बहुत सहारा मिल जायगा।" ___ आचार्यश्रीने अंबालेके श्रीसंघकी इच्छानुसार आज्ञापत्र भेज दिया कि,-" तुम अंबालेके श्रीसंघकी विनतीकी अवहेलना मत करना । अभी राजविजयजीका शरीर विहार करने लायक भी नहीं है। इसलिए अंबालेहीमें चौमासा करलेना । तुम जवान हो । चतुर्मास करलेनेके बाद भी तुम लोग विहार करके पालीताने पहुँच सकोगे।" । - आचार्य महाराजकी आज्ञा मिल गई, फिर क्या था ? आप चुप हो रहे। वहीं चौमासा स्थिर हो गया। उस समय आपको अमृतसरके वृद्ध श्रावक लाला बागामलजी लोढ़ाकी बात याद आई । उन्होंने अमृतसरसे चलते समय कहा था कि,-" महाराज ! आप मुझ बूढेकी बात न सुनकर यहाँसे जा रहे हैं। मगर याद रखिए कि आप अंबालेसे
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