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________________ आदर्श जीवन । लेना । हम आपके दर्शनलाभसे वंचित रहकर भी आपका आचार्यश्रीकी चरणसेवामें रहना ज्यादा पसंद करते हैं । इसीमें आपका और साथ ही समाजका भी कल्याण है।" ___इन पत्रप्रेषकोंमेंसे बड़ौदाके धर्मात्मा सेठ गोकलभाई दुर्लभदास, खीमचंद भाई, आपको पहले दिनसे ही धर्मकाममें सहायता देनेवाले जौहरी हीराचंद ईश्वरदास | भरूचके सेठ अनोपचंद मलूकचंद, खंभातके सेठ पोपटभाई अमरचंद, धूलिया (खानदेश ) के सेठ सखाराम दुल्लभदास आदि सज्जन मुख्य थे। ___ आपके दिलमें पहले ही अनेक तर्क वितर्क उठ खड़े हुए थे और फिर ऊपरसे पंजाबके समस्त श्रीसंघका और गुजरातके अनेक धर्मात्मा श्रावकोंका आग्रह । आपका दिल फिर गया। आपने निश्चय कर लिया कि आचार्यश्रीकी चरणसेवा छोड़कर मैं कहीं न जाऊँगा । विद्या जो कुछ प्राप्त होनी होगी मुझे आचार्यश्रीके चरणोंमें बैठ कर ही होगी। श्रीराजविजयजी महाराज, श्रीमोतीविजयजी महाराज और श्रीविवेकविजयजी महाराज सहित बड़े आनंदसे आपने अंबालेमें चौमासा बिताया। वहाँ किसी निकम्मीसी बातके पीछे श्रावकोंके आपसमें मनमुटाव हो रहा था वह भी मिट गया और मंदिर बनानेका कार्य जोरोंसे चलने लगा। इस तरह अंबालेमें आपका सं० १९४९ का छठा चौमासा हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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