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( ६६ ) के वास्ते देकर श्री गुरु महाराज के अभिग्रह की पूर्ति कराई और महान् पुण्य का उपार्जन किया।
गुरुकुल स्थापित होगया किन्तु मकान की परम आवश्यकता थी। अतः श्री गुरुदेव ने पंन्यासजी महाराज को बंबई लिखा और उन्होंने गुरुकुल के मकान के लिये २०००० रु० बंबई से भिजवाये।
, गुजरांवाला के चातुर्मास के पश्चात् सेठ विट्ठलदास ठाकुरदास आपकी सेवा में आये, तब ५०००) रुपये आपकी भेंट में रखने लगे। किन्तु जैन साधु रुपये पैसे तो लेते रखते नहीं, अतः वह ५०००) रु० भी दानवीर सेठ की तर्फ से 'श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल' को दे दिये गए।
आपके गुजरांवाले के चातुर्मास में उपाध्याय श्री सोहनविजयजी महाराज का स्वर्गवास हुआ। पूज्य उपाध्यायजी महाराज ने महासभा और गुरुकुल की स्थापना के लिये बड़ा परिश्रम किया था। अतः ऐसे महात्मा की स्मृति को ताज़ा रखने के लिये उनके नाम पर वहां गुरुदुल में वाचनालय खोला गया। इसमें पंन्यासजी श्री ललितविजयेजी ने पर्याप्त आर्थिक सहायता दिलाई थी।
आप इस प्रकार शिक्षा प्रचार करते हुए बिनौली जिला मेरठं पधारे। वहां प्रतिष्ठा तथा मुनिरान श्री विशुद्धविजयनी, विकाशविजयजी तथा साध्वी श्री चारित्र
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