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श्रीयुत् सेठ विट्ठलदास ठाकुरदास जो पक्के, वैष्णव धर्मानुयायी थे, वे उनके पक्के भक्त हो गए। न मालूम पूर्व जन्म का इनका कोई संबन्ध था ? पंन्यासजी महाराज. पर उनका इतना विश्वास हो गया कि जो आज्ञा हो, उसे पालने के लिए वे सदा तत्पर रहते थे । चातुर्मास के अन्दर सेठ विट्ठलदासजी ने केवल ३ दिनों को छोड़ बाकी २७ दिन तक ब्रह्मचर्य पालन करने का प्रण ले लिया था । एक दिन वे पंन्यासजी महाराज की सेवा में बिलापारला आये । वार्त्तालाप करते २ उन्होंने प्रार्थना की"गुरुदेव ! मेरी इच्छा है कुछ रुपया सत्कार्य में लगा कर अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करूँ । आप कोई अच्छा क्षेत्र बतावें । जहाँ बोया हुआ बीज कालान्तर में भी फल देता रहे ।” “शिक्षा क्षेत्र के बराबर दूसरा कौनसा हो सकता है ?” पंन्यासजी ने कहा । उन्होंने मन में यह विचार किया कि बहुत अच्छा हो यदि इस सेठ का पैसा अच्छे क्षेत्र में लगे और श्री गुरु महाराज साहब का अभिग्रह भी पूरा हो जाय । अतः मिल कर दोनों ने श्री गुरुदेव की सेवा में अपने हगतभाव लिखे और श्री गुरुदेव की आज्ञा से सेठ ने ३२०००) की रकम एक साथ 'श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल, पंजाब
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