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- आपके इस चातुर्मास में कई धार्मिक कार्य हुए। 'श्रीआत्मानन्द जैन गुरुकुल, पंजाब' की स्थापना हुई। वहां 'श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल के वास्ते अन्य ग्रामों से २६५००) रुपयों का फंड हुआ। ४००००) रुपयों की रकम गुजरांवाला श्रीसंघ ने पहले ही एकत्र कर ली थी।
उधर बंबई में आपके शिष्यरत्न पंन्यासजी श्री ललित विजयजी ने पहली आत्मानन्द जयन्ती विलेपारले में मनाई। बंबई से आये हुए दानवीरों की सहायता से रु० २७५००) की विद्यालय को रकम प्राप्त हुई। दूसरे वर्ष की जयन्ती तक श्री महावीर जैन विद्यालय की बिल्डिंग के लिए लगभग दो ढाई लाख रुपये विद्यालय को प्राप्त होगए थे। . दैवयोग से वहां पंन्यासजी बीमार होगए । निमोनिया से तो वे किसी तरह ठीक होगए किन्तु निमोनिया की शान्ति के लिए डाक्टरों ने उनकी बाई भुजा पर जो इञ्जेक्शन लगाया था, वह पक गया। होते २ पौन इञ्च जितना घाव भी होगया। : वे हवा बदलने के वास्ते विलेपारला पधारे। वहां
उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक होने लगा। : इन दो वर्षों के बंबई निवास से कई एक धनाढ्य (उनकी सेवा में आकर उनके सदुपदेश से अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करते रहे।
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