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जागृत करके जो काम किया जाता है वह स्थायी होता है और उसकी जड़ें गहरी होती हैं। इस बात का आपने अनुभव किया। उस वक्त जैन समाज कितना पिछड़ा हुआ था, यह अनुमान से जाना जा सकता है।।
पंजाब के दौरे में आपने सब से पहले 'श्री हर्षविजयजी ज्ञान भंडार' की स्थापना करवाई। सं० १९५८ में "श्री आत्मानंद जैन पाठशाला" अमृतसर की नींव रक्खी गई। और भी स्थान २ पर छोटे बड़े विद्यालय स्थापित हुए।
सं० १६६० में आपके उपदेश से अंबाले में श्री आत्मानन्द जैन पाठशाला की नींव पड़ी। उस पाठशाला की हालत दिनों दिन उन्नत होती जा रही है। इसी वर्ष उसे कॉलेज कर दिया गया है। आपके परिश्रम के फल स्वरूप जो जो संस्थाएँ उन दिनों स्थापित हुई जैसे, जंडियाला, मालेरकोटला, गुजरांवाला और लुधियाना इत्यादि के स्कूल, वे सब आज अच्छी स्थिति में चल रहे हैं ।
आप इस प्रकार शिक्षा प्रचार करके केन्द्रीय संगठन से जैन समाज का मुख उज्ज्वल करते हुए पंजाब में विचरते रहे। अब तक गुजरात प्रॉन्त से अनेक विनतियां
और अनेक श्रीमन्त आपको गुजरात पधारने की प्रार्थना करने आते रहे थे। गुजरात से आये आप को २२
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