________________
( ३५ ) आपने कथा वाचकजी की उस दिन की कथा की त्रुटियां भी सुनादीं। पंडितजी मुग्ध थे। नत होकर बोले । “साहब ! हम तो पेट के लिए कथा करते हैं। हम से भूलें हो ही जाती हैं।" पंडितजी नमस्कार करके अपने घर चले गए। - ऐसे ही आप एक वार किसी गाँव में पहुँचे। गांव के पास पहुँचते ही आप के चित्त में कुछ ग्लानि सी हुई। किन्तु अगला गांव दूर देख कर आपने गांव में प्रवेश किया। सामने ही एक घर में बकरे की लाश टंगी देखी। अब क्या हो सकता था ? ... गांव की सराय में पहुँचे । जाकर बैठे ही थे कि कुछ लोग बल्लम (लाठी-डांग) आदि लेकर सामने से जाते हुए दिखलाई दिए। आपका दया पूर्ण हृदय भर आया। किन्तु कुछ पता न था कि ये कहाँ जा रहे हैं ? आप कुछ भी न बोले। थोड़ी ही देर में धर्मशाला के रक्षक बाबाजी की स्त्री आई। उसने आप से निवेदन किया। "महाराज ! आप यहां न ठहरें। मेरा स्वामी डाकू है। वह सते को मुसाफिरों का सर्वस्व लूट लेता है और यदि आवश्यक्ता समझता है तो उनकी हत्या करने में भी नहीं चूकता। मुझे डर है कि कहीं उसे साधु हत्या का पाप न लगे।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org