________________
( २८ )
१ - आत्म संवत् प्रारंभ करना। यह संवत् अबतक बराबर प्रचलित है ।
२ - आचार्य श्री का समाधि मन्दिर बनवाना । वह भी अब बन कर तैयार हो चुका है और पंजाब का श्रीसंघ उस समाधि मंदिर को अपना तीर्थ समझता है ।
३ - प्रत्येक स्थान पर श्री आत्मानन्द जैन सभाएँ स्थापित करके एक केन्द्रीय संगठन करना ।
४ – पाठशालाएँ स्थापित करना तथा 'श्री आत्मानन्द जैन महा-विद्यालय' की स्थापना करना ।
1
५ - - " श्री आत्मानन्द जैन पत्रिका " प्रकाशन करना । आपके प्रयास से सभी उद्देश्यों की पूर्ति के लिये संतोष जनक कार्य हुआ और हो रहा है यह अवसर पंजाब के श्वेताम्बर मूर्त्ति पूजक संप्रदाय के लिए इतना नाजुक था कि जरासी भी भूल हो जाने या कमजोर हाथों में पड़ जाने से सारा किया कराया चौपट होजाने का भय था । गुरु वियोग का दुःख, सारे पंजाब की संभाल, अपना मिशन पूरा करना और उस पर भी विरोधियों द्वारा किये गये आक्षेपों को सँभालना । परन्तु आपने जिस उत्साह से यह सब कार्य सम्यक् रीति से किया, वह स्तुत्य हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org