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आपकी व्याख्यान शैली तथा विद्वत्ता अबतक इस कोटि तक पहुंच चुकी थी और आपके व्यक्तित्व का इस कंदर प्रभाव था कि आप जिधर जाते सारी जनता, जैन जैनेतर सभी, आपके दर्शन करने तथा व्याख्यान सुनने के लिए टूट पड़ते। गाँव २ में तथा घर में आपके सद्गुणों की चर्चा हो रही थी। आपको जो कोई एकबार देख लेता, स्वतः ही आपके वशीभूत हो जाता। स्थानकवासी संप्रदाय पर तो आपकी विशेष धाक जम गई थी।
शिक्षा के क्षेत्र में __ पहली योजना चल रही थी, किन्तु उसका पुष्ट होना अत्यन्त आवश्यक था; अतः उस शिक्षा वाले उद्देश्य को लेकर आप आगे बढ़े और संवत् १९५८ में जंडियाला में श्री आदीश्वर भगवान् के नवीन मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय बाबाजी श्री कुशलविजयजी महाराज की अध्यक्षता में एक सभा करके ये प्रस्ताव भो स्वीकृत करायेः--
"श्री आत्मानन्द जैन पाठशालाओं के लिए प्रत्येक नगर में चन्दा लिखाया जावे, पाई फण्ड की स्थापना की जावे अर्थात् इस फण्ड में प्रत्येक मनुष्य हर रोज एक पाई दिया करे, एवं विवाह आदि अवसरों पर शिक्षा के लिए
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