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की कीर्ति थी। इसका प्रयत्न करना आपका कर्त्तव्य था। क्योंकि उक्त मुनिराज आपकी प्रेरणा से ही पंजाब में पधारे थे। , श्रीमद् विजयानन्द सूरिजी महाराज ने पंजाब रक्षा का भार आपको सौंपा था। उसे आपने विरोधियों की बौछारों से इस प्रकार बचा लिया। अब बाहिरी विरोधों से बचकर सामाजिक संगठन का काम करना रहता था । सामाजिक जीवन का उत्थान संगठन के बिना अधिक दिनों तक सुचारु रीति से चलना दुस्तर होता है। इस कार्य के लिए आपने सर्व प्रथम सारे पंजाब प्रान्त को एक सूत्र में बांधने का कार्य-क्रम तैयार किया। . शास्त्रार्थों की बातें एक तरफ चल ही रही थीं। दूसरी ओर रचनात्मक कार्य की ओर भी आपका ध्यान था । सारे पंजाब का दौरा करते हुए आपने अपना प्राथमिक उद्देश्य भी सम्मुख रखा।
श्री आत्मारामजी महाराज का देहान्त संवत् १९५३ में गुजरांवाला में हुआ था। आपने उस वर्ष वहीं चातुर्मास करके सर्व प्रथम स्वर्गीय श्री आचार्यदेव की स्मृति को चिर स्थायी रखने के लिए कुछ योजनाए तैयार की, तथा उन योजनाओं को कार्य रूप में परिणित करने हेतु पंजाब श्रीसंघ को उपदेश दिया। वे योजनाएँ निम्न प्रकार से हैं:--
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