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________________ ( १४४ ) दर्शन किये। फिर ३ बजे वहीं कलिकाल सर्वज्ञ कुमारपाल के प्रति-बोधक जैनाचार्य श्री हेमचंद्रसूरिजी महाराज की जयन्ती मनाई गई । अगले दिन चतुर्विध संघ और बहुत से बाहर के नगरों से आये हुये भाइयों के साथ नगर यात्रा की । श्रीयुत् भाईचंद कशलचंद की पेढ़ी की तरफ़ से यहां श्री ऋषभदेव भगवान् की चरण पादुका और श्रीमद्विजयानंद सूरिजी महाराज की देहरी तैयार हुई थी । आपने उसकी प्रतिष्ठा कराई । यहां से विहार करके आप शाम को झवेरी दलपत भाई के बंगले में ठहरे । साधु साध्वी और साथ में आये हुये श्रावक श्राविकाओं का बड़ा समुदाय था । आपने धर्म देशना दी और सेठजी की तरफ से प्रभावना हुई । अगले दिन सायमा पहुँचे । खंभात का संघ यहां तक भी साथ ही आया । श्री भाईचंद कशलचंद वालों की तरफ से स्वामीवत्सल हुआ। तारपुर, सोजितरा, ऊ होकर आप मातर पधारे। यहां श्री सुमतिनाथ स्वामी का धाम है । खंभात और अहमदाबाद का संघ यहां भी आया, पूजा पढ़ाई गई और स्वामीवत्सल हुआ । नायका, बोरेजा, नारोल होकर आप अहमदाबाद पधारे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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