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________________ ( १४५ ) नगर सेठ आदि की विनती से आप ऊजमबाई की धर्मशाला में पधारे। ___आपके शिष्य श्री विवेकविजयजी महाराज और उनके शिष्य आचार्य श्री विजयोमंग सरिजो महाराज आदि वहां मिले। शाम को लुणसावाड़ा के मुखिया भाइयों की विनंति से आप लुणसावाड़ा पधारे। यहां पर भूतपूर्व दोवान साहिब श्रीयुत् के. के. ठाकुर साहिब आपके दर्शनार्थ आये और हिन्दू महासभा के विषय में बात चीत करने लगे। चतुर्दशी के दिन आपका ऊजमबाई की धर्मशाला में व्याख्यान हुआ। इस व्याख्यान में भी दीवान साहिब आये और आपका हिन्दू संगठन के विषय में व्याख्यान भी हुआ। अमावस को आपका लुणसावाड़ा में व्याख्यान हुआ। बंबई से श्रीयुत् कान्तिलाल ईश्वरलालजी राधनपुर पधारने के लिये आपसे विनंति करने आये। अपने स्थान राधनपुर में उन्होंने अपने पिताजी के स्मरणार्थ एक बोर्डिङ्ग हाऊस बनवाया था। उसके उद्घाटन के अवसर पर आप एक बहुत बड़ा उत्सव करना चाहते थे। उसी अवसर पर वहां पधारने के लिये आपने आचार्य श्री से विनंति की, जिसे आपने सहर्ष मान लिया। अगले दिन मसकती मार्केट में आपका विश्वधर्म के विषय में मनोहर व्याख्यान हुआ। यहां से आपको शाहपुर के डॉक्टर चिमनलाल महासुख १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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