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की ओर लगन को देख कर शिक्षक आपको प्यार करते साथी प्रेम रखते । इस प्रकार ये दिन भी बीत गए ।
समय का चक्कर ! 'दो वर्ष पीछे माताजी ने, आपकी ग्यारहवें वर्ष की आयु में ही, इह लोक-लीला समाप्त की । माता पिता दोनों के प्रेममय हृदयों के वियोग ने आपको अब और भी अधिक गम्भीर तथा शान्त बना दिया |
शिक्षा, साधु समागम तथा वैराग
अध्ययन चलता रहा । हिन्दी, गुजराती आदि पढ़ने और सुन्दर लिखने में आप सर्वदा अच्छे रहे । जितने वर्ष आप पाठशाला में रहे आप किसी भी कक्षा में अनुतीर्ण नहीं हुए । कक्षा में सर्वदा सम्मान भाजन रहते रहे । किन्तु अब उस पढ़ाई की ओर आपकी रुचि कम होने लगी । अब आपके हृदय में इन दैनिक वियोगादि दुःखों से छुटकारा पाने (मुक्ति) की ओर रुचि हुई । पाठशाला में अध्ययन के साथ २ धर्म कार्यों तथा साधु समागम में आपकी रुचि होने लगी। बड़े भाई ने आपकी यह लगन देखी। उनके हृदय में शङ्का होने लगी, उन्होंने आपको पढ़ाई लिखाई से हटा कर घर के कार्यों में जोड़ने का विचार किया। पंद्रहवें वर्ष में पदार्पण करते ही आपको
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