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से ही गम्भीर, शान्त तथा आज्ञाकारी थे। "होनहार बिरवान के होत चीकने पात ।"
गम्भीरता और सहनशीलता तो आपके जन्म जात गुण हैं। प्रेम और सुख की छाया में आप बड़े होते रहे। किन्तु "सब दिन जात न एक समाना" हमेशा एक सरीखी किसी की नहीं रही। “नानक दुखिया सब संसार" किसी को कम और किसी को ज्यादा, किन्तु सुख में दुःख का अंश अवश्य मिला रहता है। इसी नियमानुसार आपको भी वे दिन देखने पड़े। आपके पिताजी आपकी अल्पायु में ही इस असार संसार को छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए । इस समय आपकी अवस्था लगभग 8 साल की थी। अब घर का सारा भार आपकी माताजी पर आपड़ा। आपकी माता एक सच्ची सती नारी थी। अपने बड़े पुत्र ‘खीमचन्द' भाई की सहायता से घर का काम स्वयं संभालने लगी।
खोमचन्द भाई की देख रेख में घर का काम अच्छी तरह से चल रहा था। छगनलाल आनन्द से दिन बिताने लगे। आपका यथा समय विद्यारम्भ संस्कार हुआ। अब मां का प्यारा 'छगन' पाठशाला में भी 'छगन' हो गया। वहां जाते ही आपकी सज्जनता, सहनशीलता और पढ़ने
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