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इसी नगरी में श्रीमाली महाजन वंश के एक सज्जन पुरुष दीपचन्द भाई रहते थे। उनकी पत्नी का नाम इच्छा बाई था। दोनों पति-पत्नी परम सात्विक, ईश्वर भक्त तथा धर्मात्मा थे । वे सब प्रकार से शान्त और सन्तुष्ट थे । उन्हें इधर उधर की कोई चिन्ता न थी । आप अपने व्यवसाय के सिवाय अपना सारा समय सत्कार्यों में ही व्यतीत करते थे । इस प्रकार यह कुल अत्यन्त आनन्द से दिन बिता रहा था ।
उनके दो पुत्र थे, हीराचन्द और खोमचन्द तथा तीसरे के आगमन की आशा थी । इस बार दम्पती का हृदय विशेष आनन्दित रहने लगा | भाई दूज कार्त्तिक शुक्ला २ संवत् १६२७ के दिन तृतीय पुत्र रत्न ने जन्म लिया । माता-पिता का प्रेम इस सन्तति के गर्भ में आते ही परस्पर खूब रहने लगा। शुभ मुहूर्त्त पर जन्मोत्सव मनाया गया, और शुभ नाम “ छगनलाल " रक्खा गया । आप हो हमारे चरित्र नायक हैं ।
प्रेम की छाया में पुत्र का दिनों दिन विकास होने लगा । ऊधमी (चपल) बालकों से माता पिता तंग रहते । शान्त, आज्ञाकारी, सहन-शील पुत्र को देखकर उनका हृदय आनन्द से नाच उठता है । 'छगनलाल' वालकपने
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