________________
( १११ )
तदनुसार आप श्री गुरुदेव के ध्येय की पूर्ति के लिये अपने जीवन में महान् परिश्रम उठा कर पंजाब में जैनत्त्व कायम रखने में सफल हुये हो ।
तदुपरांत श्री महावीर विद्यालय की स्थापना करके तथा श्री आत्मारामजी महाराज के पट्टधर की पदवी को सुशोभित करने की जैन जनता की आग्रहयुक्त विनती को मान कर पंजाब में ज्ञान का झंडा फहरा कर आपने सद्गत् गुरु महाराज की आंतरिक अभिलाषा को पूर्ण किया।
आपने गुजरानवाला, वरकाणा, उम्मेदपुर तथा गुजरात, काठियावाड़, वगैरह स्थलों में ज्ञान प्रचार की महान् संस्थाओं को स्थापित कर और जगह २ पर जैन समाज में फैले हुये वैमनस्य एवं परस्पर मत - भिन्नता आदि को मिटा कर जैन जनता पर भारी उपकार किया है । इतना ही नहीं, किन्तु अज्ञानान्धकार में भटकते हुये जैन बंधुओं को धर्म का मार्ग बता कर तथा उनमें ज्ञान का संचार करके उनको सच्चे जैन बनाने में जो भगीरथ परिश्रम उठाया है, उसकी हम जितनी क़दर करें वह कम है ।
आपके इन सब महान् उपकारों से तो जैन जनता किसी भी प्रकार उऋण नहीं हो सकती, फिर भी फूल के स्थान पर पत्ती के रूप में आपको 'अज्ञानतिमिरतरणि कलिकाल कल्पतरु' विरुद अर्पण करने को हम विनयपूर्वक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org