________________
( १०९ ) उन्हें धर्मोपदेश दिया। जैसलमेर से लोधरवा तीर्थ पर गये और संघ-पति को माला पहनाई गई। • आगे चल कर आप बाड़मेर पधारे। नाकोडाजी तीर्थ की यात्रा कर, जालोर, आहोर होकर आप उम्मेदपुर पधारे। शिवगंज में कुछ कुसंप था। आप वहां पधारे और संघ को परस्पर भेद भाव मिटा कर एक होने का उपदेश दिया। सब ने आपकी आज्ञा को शिरोधार्य किया और संघ में शांति हुई। पास ही बामणवाड़जी में नवपदजी की ओली के दिनों में एक महोत्सव होने वाला था, जिसमें पधारने के लिये आपसे भी प्रार्थना की गई थी। उधर से प्रसिद्ध योगीराज श्री विजयशांतिमूरिजी महाराज जो प्रायः आबू के योगिराज के नाम से प्रख्यात हैं, लुणावा के संघ के साथ और पं० श्री ललितविजयजी, श्री मुनि मित्रविजयजी, श्री समुद्रविजयजी, श्री प्रभाविजयजी इत्यादि मुनि महाराज भी बामणवाड़जी पधारे। ओली महोत्सव में बड़ी रौनक रही। जैन धर्म के प्रचार में जितना परिश्रम आपने किया है, तथा जैन समाज पर जो जो उपकार आपने किये हैं और जिनसे समाज का प्रत्येक व्यक्ति अच्छी तरह अनुभव कर रहा है। उसके उपलक्ष्य में एक अभिनंदन पत्र आपकी सेवा में भेंट किया गया जिसकी नकल पाठकों के विनोद के लिये नीचे दी जाती है:-.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org