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यहां से विहार करके आप जोधपुर पधारे। वहां पूर्व - परिचित आहोर वाले ठाकुर साहिब की हवेली में ठहरे। ८ दिन तक वहां विश्राम किया । हज़ारों जैन जैनेतर और अधिकारी वर्ग भी व्याख्यान सुनने का लाभ लेते थे । सच है - " संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय ।"
जोधपुर से आप ओसिया पधारे। कहते हैं कि भारतवर्ष में जितने भी ओसवाल जैन हैं, उन सब का आदि निवास स्थान ओसियां नगरी में ही था। अब भी " वर्द्धमान जैन विद्यालय, जैन बोर्डिङ्ग और स्कूल" जैन धर्म की उन्नति के लिये वहां अच्छा कार्य कर रहे हैं। वहां से फलोधी पधारना हुआ । श्री मंगलविजयजी गणि और साहित्य प्रेमी मुनि श्री ज्ञानसुंदरजी वहां पहले से विराजमान थे। संघ के साथ मुनिराज भी आपके स्वागत के लिये आये। जो संघ जैसलमेर के लिये रवाना हुआ उसमें ५ हज़ार यात्री इकट्ठे हुये थे । फाल्गुण सुदि ३ को जैसलमेर पहुँचे । वहां के जैन भंडार दर्शनीय हैं । वहां बहुत से अमूल्य ग्रंथ छिपे पड़े हैं। विद्वानों से प्रार्थना है कि उनको प्रकाश में लाकर प्राचीन विद्वानों के परिश्रम को सफल करें ।
जैसलमेर में विश्राम के अंतर में वहां के महाराजा श्री जवाहरसिंहजी के साथ राजमहल में मुलाकात हुई । आपने
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