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(१०७ ) जंगल में मंगल हो रहा है और मारवाडीभाईयों में भी शिक्षा प्रचार होने लगा है, अच्छी पुष्टी मिली। वापसी पर पादरली, थूबा से वरकाणा गये। वहां से बीजोवा पधारना हुआ। नाडोल संघ के आग्रह से वहां जिन बिंब की प्रतिष्ठा के उत्सव में सम्मिलित हुये। सादड़ी संघ के आग्रह से पुनः सादड़ी पहुँचे। संवत् १९८८ का चातुर्मास आपने सादड़ी में ही व्यतीत किया। आपके इस चातुर्मास में शासन की अच्छी उन्नति हुई। शिक्षा प्रचार का कार्य भी हुआ। श्री आत्मानन्द जैन विद्यालय जिसका काम कुछ समय से बंद पड़ा था, फिर से जारी हुआ । एक जैन उपाश्रय भी तैयार हुआ जो 'नाती के नौहरा' के नाम से प्रसिद्ध है। सादड़ी संघ में कुछ कुसंप सा था । आपके सदुपदेश से वह भेद भाव भी मिट गया। फलौधी से श्रीयुत् राजमलजी वैद, चंपालालजी वैद और संपतलालजी कोचर आदि सज्जन विनती के लिये आये। वे कहने लगे कि श्रीयुत् पांचुलालजी वैद को फलौधी से जैसलमेर का संघ निकालना है। आप इसमें पधार कर अनुगृहीत करें।
चौमासे के बाद वरकाणा होकर आप पाली पधारे । व्याख्यान में धूम धाम होती थी। वहां एक कन्या पाठशाला की बड़ी आवश्यक्ता थी। आपने उसके लिये उपदेश दिया।
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