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श्री महाराणा साहिब की रांगों में कोई दोष है। आपने समझाया कि यह किसी पूर्वकृत पाप का ही परिणाम हो सकता है। महाराणा साहिब इस बात को सुनकर संतुष्ट हुए और कहने लगे-"सच है, अपने किये शुभाशुभ कर्मों का फल सब को भोगना ही पड़ता है। अतः प्राणी को भूलकर भी पाप-मार्ग का अनुसरण न करना चाहिये।" :. उदयपुर से भानपुर की नाल ( घाटा ) में से होकर अक्षय तृतिया ( वैशाख सुदि ३) को राणकपुर पधारे । भगवान् के दर्शन कर आनंदित हुये। यहां सादड़ी का श्री संघ भी आया। पूजा, स्वामीवत्सल तथा प्रभावना आदि धर्म के शुभ कार्य हुये और आपसे सादड़ी पधारने की प्रार्थना की। कई वर्ष पीछे आप सादड़ी पधारे, सादड़ी वालों ने अपूर्व उत्साह और अकथनीय हर्ष का परिचय दिया। फिर सादड़ी से देसूरी, घाणेराव, नाडलाई, नाडोल होकर वरकाणाजी पधारे। पंन्यासजी श्री ललितविजयजी महाराज, श्री मित्रविजयजी, श्री वसंतविजयजी तथा श्री विक्रमविजयजी, उम्मेदपुर से विहार करके यहां मिले। फिर आप बीजोवा, खीमेल, तखतगढ़ होकर उमेदपुर पधारे। वहां जाने से और कुछ दिन वहां विश्राम लेने से श्री पं०. ललितविजयजी महाराज के सदुपदेश और प्रयास से स्थापित श्री पार्श्वनाथ उम्मेद जैन बालाश्रम को, जिसके कारण
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