SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०५ ) मूर्ति पहले यहां थी। कुछ दिनों तक आप आसंपुर के आस पास के गांवों में विचरते रहे। आपके इस विहार से लोगों को अपूर्व लाभ हुआ। फिर आप ३००, ३५० श्रावक श्राविकाओं सहित श्री केसरियानाथजी की यात्रा के लिये पधारे। यात्रा करके अति आनंदित हुये। आपके श्री केसरियानाथजी पधारने का समाचार शीघ्र ही इधर उधर फैल गया। उदयपुर के मुख्य २ बंधु विनंति के लिये श्री केसरियानाथजी आये। वहां आहोरके ठाकुर साहिब के राजकुमार भी आये हुये थे। श्री आचार्य महाराज के दर्शन कर आप बड़े प्रसन्न हुये और वात चीत करके अपने आपको कृतकृत्य समझने लगे। आपके सदुपदेश से श्री ठाकुर साहिब के कुमार ने माँस मदिरा आदि का त्याग कर दिया। - यात्रा करके श्री आचार्य महाराज उदयपुर पधारे। चाहा बाई की धर्मशाला में आपने विश्राम किया। व्याख्यान में बड़ी धूम धाम रही। आपका नाम तो प्रख्यात था ही। उदयपुर नरेश श्रीमान् महाराणा भूपालसिंहनी को भी आपके दर्शनों की उत्सुकता हुई। गुलाब बाग में मुलाकात का प्रबंध हुआ। एक घंटा तक 'पुण्य-पाप' के विषय में उपदेश होता रहा। विवेचन को स्पष्ट करने के अभिप्राय से आपने महाराणा साहिब का ही उदाहरण प्रस्तुत किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy