SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०३ ) आत्मानन्द जैन भवन' रक्खा गया । अकोला वाले भी चातुर्मास के लिये आग्रह करते थे, वहां श्री समुद्रविजयजी, सागरविजयजी तथा श्री विशुद्ध विजयजी महाराज का चातुर्मास हुआ । चौमासे के उपरांत विहार करके आप मांडवगढ़ पधारे । इंदौर से सेठ नथमलजी कन्हैयालालजो रांका आदि इंदौर पधारने के लिये प्रार्थना करने आये । शीयोर से लगभग १०० भाई दर्शनार्थ पधारे। लाला माणकचंदजी दूगड़ व सुंदरदासजो बरड भी गुजरांवाला से दर्शनार्थ आये थे । बुरहानपुर के एक माता-पुत्र का झगड़ा चल रहा था । आपके उपदेश से वह क्लेश भी शान्त हो गया । मांडवगढ़ से चल कर आप धार पहुँचे। यहां आसपुर के सेठ तारावत चंपालालजी निहालचंदजी कचरूलालजी आदि बहुत से भाई आये और आप से आसपुर पधारने के लिये आग्रहभरी विनती करने लगे। आप आसपुर लेजाना चाहते थे। आप श्री केसरियाजी की यात्रा के लिये जाना चाहते थे । आसपुर रास्ते में आता था । परंतु मार्ग में रतलाम के भाई आ पहुँचे और आग्रह पूर्वक विनती करके रतलाम ले गये । आपके रतलाम प्रवेश के समय अश्रुत - पूर्व रौनक थी । चार दिन तक वहां विश्राम किया । व्याख्यान में जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy