________________
(१०२ ) के पश्चात् दौलताबाद आदि स्थानों में विचरते, हुये आप इलोरा पहुँचे। वहां की गुफाओं को देख कर भारतवर्ष की पुरानी कला के संबन्ध में आपको अच्छा अनुभव हुआ।
इलोरा से श्री अंतरिक्षजी की यात्रा के लिये गये ।। बालापुर के नेता सेठ लालचंद, खुशालचंद, सुखलाल
आदि विनंति के लिये आये। चैत्र की ओली यहां ही हुई, और सेठ लालचंद ने इस संबंध में खर्च का भार उठा कर अपनी लक्ष्मी का सदुपयोद किया। यहां एक जैन धर्मशाला की बड़ी आवश्यक्ता थी। धर्मशाला बनवाना श्रीसंघ ने निश्चित किया।
यहां से आप बालापुर पधारे। कुछ दिन वहां ठहर कर अकोला संघकी विनंति के कारण आप अकोला गये। वहां भी एक जिन मंदिर की प्रतिष्ठा होने वाली थी। आपके पधारने पर बड़ी धूम धाम से प्रतिष्ठा हुई। श्री गुरुदेव की जयन्ती यहां ही मनाई गई। संघ ने चातुर्मास के लिये बड़ा आग्रह किया। आपने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके वह चातुर्मास वहीं व्यतीत किया। आपके साथ मुनि श्री चरणविजयजी, श्री शिवविजयजी और श्री विक्रमविजयजी महाराज थे। आपके वहां विराजमान होने से श्रीसंघ के उत्साह में बड़ो वृद्धि हुई। अकेले ही सेट लालचंदजी में वहां अति सुंदर उपाश्रय बनवाया जिसका नाम 'श्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org