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(१०१ ) आपके प्रवेश में बड़ी धूम धाम का होना स्वाभाविक ही था।
चैत्र मुदि त्रयोदशो को श्रीमहावीर प्रभु की जयंती (जन्म) के दिन आपने सब तडों को इकहे कर दिये जिसकी खुशी में सब तड़वालों ने मिल कर सब की इकट्ठी ही जवकारसी की। आठ वर्षों के बाद पूना शहर में संप और नवकारसी के होने से कुल श्रीसंघ और शहर में आनंद ही आनंद होरहा था। इस अपूर्व आनंद से श्रीसंघ पूना ने चौमासे के लिए खूब विनती को, श्रीसंघ का उत्साह देख कर आपने विनतो मानली और १९८७ का चौमासा पूना में किया। चातुर्मास में भी वहां के श्रीसंघ ने अच्छा लाभ लिया। आप बेतालपेठ के उपाश्रय में ठहरे हुये थे। आपके सदुपदेश से वहां 'श्री आत्मानन्द जैन लाईब्रेरी' स्थापित हुई। चातुर्मास में उपधान आदि अनेक धर्म कार्य भी हुये। इस प्रकार सं० १९८७ का चौमासा निर्विघ्नतया व्यतीत हुआ। ..
चौमासे के बाद आपने श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी के दर्शनार्थ जाने का विचार किया। फिर तलेगांव, अहमदनगर होते हुये ईवला पधारे। वहां की श्रीमती मणिबाई ने ईवला जिन मंदिर की प्रतिष्ठा में पधारने के लिये आपसे अत्यंत आग्रह पूर्ण विनंति की थी। प्रतिष्ठा कार्य के पूर्ण होने
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