________________
( १०० ) साधु का जाना नहीं हुआ था। बहुत विनंति होने से जाना पड़ा। साथ में ही ओलवण से प्रभु-मूर्ति लाई गई और आजु बाजु के कई गाँवों के श्रावक भी आये। (प्रभ पूजा और स्वामी-वत्सल हुआ। उपरांत 'श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल' के विद्यार्थियों के लिये एक बारी के साठ रुपये भेजने की इच्छा दरशाई।
टाकवा से छः माइल वडग्राम आये। यहां भी प्रभु पधारे। श्रावक समुदाय भी आ मिला। एक बाई ने पूजा और स्वामी-वत्सल किया तथा एक बारी गुरुकुल को देने का निश्चय किया। बड़गाम से कल रोज यहां तलेगाँव दाभड़ा आना हुआ।
ग्रामानुग्राम विचरते हुये आप पूना से ५ मील के अंतर पर खड़की पधारे। पूना के श्रावक आपको जल्दी पूना पधारने के लिये विनंति करने आये। आपको मालूम हो गया था कि पूना की बिरादरो में १७ तड़ (धड़े) पड़े हुये हैं। आपने ऐसी अवस्था में वहां जाने से इन्कार कर दिया। आपका पुण्य और तेज अद्वितीय और आपका प्रभाव अवर्णनीय है ही, जब बिरादरी ने अपने मनो मालिन्य को दूर करके, सबने एक भाव होकर आपसे पूना पधारने की विनंति की, तो आपने उनकी विनंति सहर्ष मानली और पूना में पधारे। ऐसी अवस्था में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org