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( ९८ ) अमावश को खंडाला, एकम को लानोली (लुनावला) पहुँचे जो तीन माइल लगभग है। यहां हवा पानी दवा
आदि की अनुकूलता है। ज्ञानी ने फरसना देखी, थी, पंद्रह दिन रहना हुआ। मार्ग में प्रायः सभी ग्रामों में मारवाड़ी श्रावकों की बस्ती है। पनवेल, पेन, खयोली, खंडाला और लानोली, यहां सब जगह मंदिर भी हैं।
माघ वदि एकम को लानोली से विहार करके लगभग डेढ़ माइल पर ओलवण ग्राम में आये। यहां भी प्रभु का मंदिर है। यहां दो दिन रहे। पूजा प्रभावना स्वामी वत्सल हुआ। लानोली और ओलवण ग्राम का कुछ कुसंप था वह मिट गया। ओलवण से चार मील लगभग कारला ग्राम में आये। इस ग्राम में भी कुसंप था सो मिट गया। मंदिरजी नहीं है, परन्तु ओलवण से प्रभुजी लाये गये और पूजा पढ़ाई गई, स्वामीवत्सल भी हुआ। आस पास के ग्रामों के लोग आजाने से सब जगह सैंकड़ों की तादाद में श्रावक ही श्रावक दिखते रहे। यहां तीन दिन रहना हुआ।
कारला व भाजा इन नामों से उत्तर और दक्षिण में दो गुफाएँ हैं, सा देखी गई। भाजा की गुफा से कारला की गुफा बड़ी और दर्शनीक मालूम देती है। कारला की गुफा में बौद्ध और जैन मूर्तियें देखने में आती हैं परंतु अधिकतर भाग बौद्ध का देखने में आता है। हमारी समझ-मुजब किसी
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