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( ९७ ) 'पेन' में खतम हो गई। पौष वदि एकादशी दुपहर में 'पेन' से विहार करके त्रयोदशी शाम को बीस माईल खयोली पहुँचे। पेन में तड़ पड़े हुये थे, मिट गये। प्रभु के मंदिर के जीर्णोद्धार का काम प्रारंभ हुआ। दो वरघोड़े (रथयात्रा) और दो स्वामीवत्सल हुये। खयोली में टाटा के तालाब का कारखाना है जहां से बिजली पैदा होकर बंबई और पूना जाती है। प्रभु ने जड़ और चेतन में अनंत शक्ति वर्णन की है जिसका यह नजारा है। देखते अकल हैरान-परेशान होती है। - चतुर्दशी खयोली में हुई। यहां से खंडाले के घाट की चढ़ाई शुरु होतो है। बस इस घाट जैसी पंचगिनी के घाट के सिवाय अन्य किसी घाट की चढ़ाई न होगी, ऐसा कईयों का कहना है। पहाड़ों को फोड़ कर अंदर ही अंदर बुगदे ( सुरंगे ) बना कर रेल ले गये हैं। कहीं २ तो एक एक माईल का लंबा बुगदा (एक प्रकार की सुरंग ) होता है जिसमें से होकर रेल जाती है। आदमी के चलने की सड़क अलग है; वहां बुगदा नहीं आता है किन्तु पहाड़ की चढ़ाई आती है।
खयोली से खंडाला पांच माईल का मुकाम है जिसमें लगभग तीन माइल की छातो भरे ही चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, परंतु सड़क होने से ऐसो कठिन चढ़ाई मालूम नहीं देती।
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