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जाता है। यह पत्र पंन्यासजी श्री ललिनविजयजी के नाम लिखा गया थाः
तलेगाँव, (पूना डिस्ट्रिक्ट)२४-१-३० वंदनानुवंदना सुखसाता। आज यहाँ आनन्द से प्रवेश हुआ है, सारा गाँव सजाया गया है। इस वक्त प्रभु के मंदिर में पूजा हो रही है । कल का दिन यहां रहना होगा। दूज ३१ जनवरी को पूना पहुँचने का भाव है । यहाँ से पूना १६ माईल है। इसलिये पत्र सोधा पूना ही देना है। मुंबई से चल कर यहां सुधी ( तक) में जो २ आनन्द
और अनुभव हुआ है, ज्ञानी ही जानते हैं। थाना तक तो तुम को खुद ही अनुभव हो चुका है। वहां से यानी थाना से बीस मील 'पनवेल' में क्रमशः यानी तीज की शाम को थाना से चल कर छठ को पहुँचे, आठम दुपहर को 'पनवेल' से चलकर दशम को 'पेन' बीस मील पहुँचे। वहां असाता वेदनी उदय में आने से दादर से गिरे, वह असाता वेदनीय कर्म अभी तक चलता है। हम भी चलते २ यहां तक पहुँचे। ऊँचे ऊँचे घाट भी चढ़ते ही आये। प्रदेश बड़ा ही रमणीय है। पहाड़ ज़रूर है परंतु सजीव हरियाली वाले। सड़क पर पंजाब जैसो प्रायः छाया। हां, अब जो पहाड़ का हिस्सा आ रहा है वह प्राय: मारवाड़ जैसा सूखा बिना हरियाली का दीखता है । मॅमसर मुदि
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