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( ९४ ) वहां श्रीसंघ में कुछ झगड़ा चल रहा था और परस्पर वैमनस्य के कारण धार्मिक कार्यों में रुकावट होरही थी। आपने चैत्रो पूर्णिमा को व्याख्यान में ही उस झगड़े का निपटारा करके संघ में शान्ति स्थापित करादी। कुछ दिन बाद वहां श्री मंदिरजी के जीर्णोद्धार की नींव रक्खो गई।
सूरत जाने का आपका विचार बिलकुल नहीं था तथापि संघ के आग्रह से आपको सूरत जाना ही पड़ा। प्रत्येक उपाश्रय के कार्यकर्ता चाहते थे कि आप उनके उपाश्रय में विराजमान हों। यह तो कठिन था फिर भी आपने उनकी प्रबल इच्छा को पूर्ण कर ही दिया। आप प्रत्येक उपाश्रय में पधारे और व्याख्यान किया। संघ संतुष्ट हुआ। सूरत में विश्राम करने के बाद आप नवसारी, बिल्लीमोरा, बलसाड़ आदि नगरों को पावन करते हुये गोलवड़ में पधारे। वरकाणा से विहार करके आते हुये गुरुभक्त पंन्यासजी श्री ललितविजयजी, मुनि श्री उत्तमविजयजी महाराज आदि आपसे यहां आकर मिले । आगे अगासी जाने पर बंबई के हज़ारों नर-नारी आपके स्वागत के लिये आये।
- यहां से मलाड होकर आप शांता क्रझ (Santa Qruz) में पधारे। यहां आपका सार्वजनिक व्याख्यान हुआ। ज्येष्ठ मुदि ५ के दिन आप बंबई में गोवालिया टैंक रोड
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