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________________ देती ? अाखिर वह मुसलमान हो गया। फिर उसने केवल जगन्नाथकी मूर्ति ही नहीं, अन्य सैकड़ों मूर्तियाँ तोड़ी और मंदिरों को लूटा । ज्ञान-मार्ग और परलोक सुधारनेके मिथ्या आयोजनोंकी संकीर्णताके कारण ऐसे न-जाने कितने अनर्थ हुए हैं और ढोंग-पाखण्डोंको प्रश्रय मिला है। पहले शाकद्वीपी ब्राह्मण ही तिलक-चन्दन लगा सकता था। फल यह हुआ कि तिलक-चन्दन लगानेवाले सभी लोग शाकद्वीपी ब्राह्मण गिने जाने लगे। प्रतिष्ठाके लिए यह दिखावा इतना बढ़ा कि तीसरी-चौथी शताब्दीमें आए हुए विदेशी पादरी भी दक्षिणमें तिलक-जनेऊ रखने लगे। ज्ञान-मार्गकी रचनात्मक देन भी है। उससे सद्गुणोंका विकास हुआ है। परन्तु परलोकके ज्ञानके नामसे जो सद्गुणोंका विकास हुआ है, उसके उपयोगका क्षेत्र अब बदल देना चाहिए । उसका उपयोग हमें इसी जीवनमें करना होगा। राकफेलरका उदाहरण हमारे सामने है । उसने बहुत-सा दान दिया, बहुत-सी संस्थाएँ खोलीं। इसलिए नहीं कि उसका परलोक सुधरे, बल्कि इसलिए कि बहुतोंका इहलोक सुधरे। सद्गुणोंका यदि इस जीवन में विकास हो जाए, तो वह परलोक तक भी साथ जाएगा। सद्गुणोंका जो विकास है, उसको वर्तमान जीवनमें लागू करना ही सच्चा धर्म और ज्ञान है। पहले खानपानकी इतनी सुविधा थी कि श्रादमीको अधिक पुरुषार्थ करनेकी आवश्यकता नहीं होती थी। यदि उस समय अाजकल जैसी खान-पानकी असुविधा होती. तो वह शायद और अधिक पुरुषार्थ करता। पर आज तो यह पुरुषार्थकी कमी ही जनताकी मृत्यु है। . पहले जो लोग परलोक-ज्ञानकी साधनामें विशेष समय और शक्ति लगाते थे, उनके पास समय और जीवनकी सुविधात्रोंकी कमी नहीं थी। जितने लोग यहाँ थे. उनके लिए काफी फल और अन्न प्राप्त थे। दुधारू पशुओं की भी कमी न थी, क्योंकि पशुपालन बहुत सस्ता था। चालीस हजार गौओंका एक गोकुल कहलाता था। उन दिनों ऐसे गोकुल रखनेवालोंकी संख्या कम न थी। मालवा, मेवाड़, मारवाड़ आदिकी गायोंके जो वर्णन मिलते हैं, उनमें गायोंके उदसकी तुलना सारनाथमें रखे 'घटोनि' से की गई है । इसीसे अनुमान किया जा सकता है कि तब गौएँ कितना दूध देती थीं। कामधेनु कोई दैवी गाय न थी, बल्कि यह संज्ञा उस गायकी थी, जो चाहे जब दुहनेपर दूध देती थी और ऐसी गौत्रोंकी कमी न थी। ज्ञान-मार्गके जो प्रचारक (ऋषि) जंगलोंमें रहते थे, उनके लिए कन्द-मूल, फल और दूधकी कमी न थी। त्यागका आदर्श उनके लिए था । उपवासकी उनमें शक्ति होती थी, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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