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________________ २७ . जैन और वैदिक अहिंसा शास्त्रीय सामग्री उपाध्यायजी को प्राप्त थी अतएव उन्होंने 'वाक्यार्थ विचार' प्रसंग में जैनसम्मत-खासकर साधुजीवनसम्मत-अहिंसा को लेकर उत्सर्ग-अपवादमाव की चर्चा की है। उपाध्यायजी ने जैनशास्त्र में पाए जानेवाले अपवादों का निर्देश करके स्पष्ट कहा है कि ये अपवाद देखने में कैसे ही क्यों न अहिंसाविरोधी हों, फिर भी उनका मूल्य प्रौत्सगिक अहिंसा के बराबर ही है । अपवाद अनेक बतलाए गए हैं, और देश-काल के अनुसार नए अपवादों की भी सृष्टि हो सकती है। फिर भी सब अपवादों की आत्मा मुख्यतया दो तत्त्वों में समा जाती है। उनमें एक तो है गीतार्थत्व यानि परिणतशास्त्रज्ञान का और दूसरा है कृतयोगित्व अर्थात् चित्तसाम्य या स्थितप्रज्ञत्व का । उपाध्यायजी के द्वारा बतलाई गई जैन अहिंसा के उत्सर्ग:अपवाद की यह चर्चा, ठीक अक्षरशः मीमांसा और स्मृति के अहिंसा संबंधी उत्सर्ग-अपवाद की विचारसरणि से मिलती है । अन्तर है तो यही कि जहाँ जैन विचारसरणि साधु या पूर्णत्यागीके जीवन को लक्ष्य में रखकर प्रतिष्ठित हुई है वहाँ मीमांसक और स्मारों की विचारसरणि गृहस्थ, त्यागी सभी के जीवन को केन्द्र स्थान में रखकर प्रचलित हुई है। दोनों का साम्य इस प्रकार है१ जैन २ वैदिक १ सव्वे पाणा न हंतव्वा १ मा हिंस्यात् सर्वभूतानि २ साधुजीवन की अशक्यता का २ चारों आश्रम के सभी प्रकार प्रश्न के अधिकारियों के जीवन की तथा तत्संबंधी कर्तव्यों की अशक्यता का प्रश्न ३ शास्त्रविहित प्रवृत्तियों में हिंसा दोष ३ शास्त्रविहित प्रवृत्तियों में हिंसा का अभाव अर्थात् निषिद्धाचरण दोष का अभाव अर्थात् निषिद्धाही हिंसा चार ही हिंसा है . यहाँ यह ध्यान रहे कि जैन तत्त्वज्ञ 'शास्त्र' शब्द से जैन शास्त्र को-खासकर साधु-जीवन के विधि-निषेध प्रतिपादक शास्त्र को ही लेता है; जब कि वैदिक तत्त्वचिन्तक, शास्त्र शब्द से उन सभी शास्त्रों को लेता है जिनमें वैयक्तिक, कौटुम्बिक, सामाजिक, धार्मिक और राजकीय आदि सभी कर्तव्यों का विधान है। ४ अन्ततोगत्वा अहिंसा का मर्म जिनाज्ञा ४ अनन्तोमत्वा अहिंसा का तात्पर्य वेद के-जैन शास्त्र के यथावत् अनुसरण तथा स्मृतियों की आज्ञा के पालन.. में ही है। में ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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