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________________ ... श्रावरण ३६३ क्लेशावरण,' शेयावरण आदि अनेक कर्मावरणों को मानता है । पर उसके मतानुसार चित्त का वह आवरण मात्र संस्काररूप फलित होता है जो कि द्रव्यस्वरूप नहीं है। न्याय आदि दर्शनों के अनुसार भी ज्ञानावरण-अज्ञान, ज्ञानगुण का प्रागभाव मात्र होने से अभाव रूप ही फलित होता है, द्रव्यरूप नहीं। जब कि सांख्य, वेदान्त के अनुसार आवरण जड़ द्रव्यरूप अवश्य सिद्ध होता है। सांख्य के अनुसार बुद्धिसत्त्व का आवारक तमोगुण है जो एक सूक्ष्म जड़ द्रव्यांश मात्र है। वेदान्त के अनुसार भी आवरण-अज्ञान नाम से वस्तुतः एक प्रकार का जड़ द्रव्य ही माना गया है जिसे सांख्य-परिभाषा के अनुसार प्रकृति या अन्तःकरण कह सकते हैं । वेदान्त ने मूल-अज्ञान और अवस्था-अज्ञान रूप से या मूलाविद्या और तुलाविद्या रूप से अनेकविध आवरणों की कल्पना की है जो जड़ द्रव्यरूप ही हैं। जैन परंपरा तो ज्ञानावरण कर्म हो या दूसरे कर्म-सब को अत्यन्त स्पष्ट रूप से एक प्रकार का जड़ द्रव्य बतलाती है। पर इसके साथ ही वह अज्ञान-रागद्वेषात्मक परिणाम, जो आत्मगत है और जो पौद्गलिक कर्म-द्रव्य का कारण तथा कार्य भी है, उसको भाव कर्म रूप से बौद्ध आदि दर्शनों की तरह संस्कारात्मक मानती है ।। ____ जैनदर्शनप्रसिद्ध ज्ञानावरणीय शब्द के स्थान में नीचे लिखे शब्द दर्शनान्तरों में प्रसिद्ध हैं। बौद्धदर्शन में अविद्या और ज्ञ यावरण । सांख्य-योगदर्शन में अविद्या और प्रकाशावरण । न्याय-वैशेषिक-वेदान्त दर्शन में अविद्या और अज्ञान। ४ [ पृ० २. पं० ३ ] श्रावृतत्व और अनावृतत्व परस्पर विरुद्ध होने से किसी एक वस्तु में एक साथ रह नहीं सकते और पूर्वोक्त प्रक्रिया के अनुसार तो एक ही चेतना एक समय में केवलज्ञानावरण से आवृत भी और अनावृत भी मानी गई है, सो कैसे घट सकेगा ? इसका जवाब उपाध्यायजी ने अनेकान्त दृष्टि से दिया है । उन्होंने कहा है कि यद्यपि चेतना एक ही है फिर भी पूर्ण और अपूर्ण प्रकाशरूप नाना ज्ञान उसके पर्याय हैं जो कि चेतना से कथञ्चित् भिन्ना १ देखो, तत्त्वसंग्रह पंजिका, पृ० ८६६ । २ स्याद्वादर०, पृ० ११०१ । ३ देखो, स्याद्वादर०, पृ० ११०३ । ४ देखो, विवरणप्रमेयसंग्रह, पृ० २१; तथा न्यायकुमुदचन्द्र, पृ० ८०६ । ५ वेदान्तपरिभाषा, पृ० ७२ ।। ६ गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गा० ६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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