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श्वेताम्बर - दिगम्बर में मतभेद
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लेश्या तथा श्रायु के बन्धान्व की अपेक्षा से कषाय के जो चौदह और बीस भेद गोम्मटसार में हैं, वे श्वेताम्बर -ग्रन्थों में नहीं देखे गए। पृष्ठ-५५, नोट । पर्यावस्था में पशमिकसम्यक्त्व पाए जाने और न पाए जाने के संबन्ध में दो पक्ष श्वेताम्बर -ग्रन्थों में हैं, परन्तु गोम्मटसार में उक्त दो में से पहिला पक्ष ही है । पृष्ठ - ७०, नोट |
अज्ञान त्रिक में गुणस्थानों की संख्या के संबन्ध में दो पक्ष कर्म-ग्रन्थ में मिलते हैं, परन्तु गोम्मटसार में एक ही पक्ष है । पृष्ठ- ८२, नोट ।
गोम्मटसार में नारकों की संख्या कर्मग्रन्थ- वर्णित संख्या से भिन्न है । पृष्ठ- ११६, नोट ।
द्रव्यमन का आकार तथा स्थान दिगम्बर संप्रदाय में श्वेताम्बर की अपेक्षा भिन्न प्रकार का माना है और तीन योगों के बाह्याभ्यन्तर कारणों का वर्णन राजवार्तिक में बहुत स्पष्ट किया है । पृष्ठ - १३४ |
मनः पर्यायज्ञान के योगों की संख्या दोनों संप्रदाय में तुल्य नहीं है । पृष्ठ - १५४ ।
श्वेताम्बर-ग्रन्थों में जिस अर्थ के लिए आयोजिकाकरण, श्रावर्जितकरण और आवश्यककरण, ऐसी तीन संज्ञाएँ मिलती हैं, दिगम्बर-ग्रन्थों में उस अर्थ के लिए सिर्फ श्रावर्जितकरण, यह एक संख्या है । पृष्ठ - १५५ ।
श्वेताम्बर-ग्रन्थों में काल को स्वतन्त्र द्रव्य भी माना है और उपचरित भी । किन्तु दिगम्बर-ग्रन्थों में उसको स्वतन्त्र ही माना है । स्वतन्त्र पक्ष में भी काल का स्वरूप दोनों संप्रदाय के ग्रन्थों में एक सा नहीं है । पृष्ठ - १५७ ।
किसी-किसी गुणस्थान में योगों की संख्या गोम्मटसार में कर्म ग्रन्थ की अपेक्षा भिन्न है । पृष्ठ - १६३, नोट ।
दूसरे गुणस्थान के समय ज्ञान तथा अज्ञान माननेवाले ऐसे दो पक्ष श्वेताम्बर-ग्रन्थों में हैं, परन्तु गोम्मटसार में सिर्फ दूसरा पक्ष है । पृष्ठ - १६६, नोट ।
स्थानों में लेश्या की संख्या के संबन्ध में श्वेताम्बर ग्रन्थों में दो पक्ष हैं और दिगम्बर-ग्रन्थों में सिर्फ एक पक्ष है । पृष्ठ - १७२, नोट ।
जीव सम्यक्त्वसहित मरकर स्त्री रूप में पैदा नहीं होता, यह बात दिगम्बर संप्रदाय को मान्य है, परन्तु श्वेताम्बर संप्रदाय को यह मन्तव्य इष्ट नहीं हो सकता; क्योंकि उसमें भगवान् मल्लिनाथ का स्त्री-वेद तथा सम्यक्त्वसहित उत्पन्न होना माना गया है । [ चौथा कर्मप्रन्थ
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