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जैन धर्म और दर्शन कर्मग्रन्थिकों और सैद्धान्तिकों का मतभेद सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि दस जीवस्थानों में तीन उपयोगों का कथन कार्मग्रन्थिक मत का फलित है। सैद्धान्तिक मत के अनुसार तो छह जीवस्थानों में ही तीन उपयोग फलित होते हैं और द्वीन्द्रिय आदि शेष चार जीवस्थानों में पाँच उपयोग फलित होते हैं । पृ०-२२, नोट। ___ अवधिदर्शन में गुणस्थानों की संख्या के संबन्ध में कार्मग्रन्थिकों तथा सैद्धान्तिकों का मत-भेद है। कार्मग्रन्थिक उसमें नौ तथा दस गुणस्थान मानते हैं और सैद्धान्तिक उसमें बारह गुणस्थान मानते हैं । पृ०-१४६ ।।
सैद्धान्तिक दूसरे गुणस्थान में ज्ञान मानते हैं, पर कार्मग्रन्थिक उसमें अज्ञान मानते हैं। पृ०-१६६, नोट ।
वैक्रिय तथा अाहारक-शरीर बनाते और त्यागते समय कौन-सा योग मानना चाहिए, इस विषय में कार्मग्रंथिकों का और सैद्धान्तिकों का मत-भेद है । पृ०१७०, नोट ।
ग्रंथिभेद के अनन्तर कौन-सा सम्यक्त्व होता है, इस विषय में सिद्धान्त तथा कर्मग्रंथ का मत-भेद है । पृ०-१७१ ।
[चौथा कर्मग्रन्थ
चौथा कर्मग्रन्थ तथा पञ्चसंग्रह जीवस्थानों में योग का विचार पञ्चसंग्रह में भी है। प०-१५, नोट ।
अपर्याप्त जीवस्थान के योगों के संबन्ध का मत-भेद जो इस कर्म-ग्रंथ में है, वह पञ्चसंग्रह की टीका में विस्तारपूर्वक है । पृ०-१६ ।
जीवस्थानों में उपयोगों का विचार पञ्चसंग्रह में भी है । प०-२०, नोट ।
कर्मग्रन्थकार ने विभङ्गज्ञान में दो जीवस्थानों का और पञ्चसंग्रहकार ने एक जीवस्थान का उल्लेख किया है । पृ०-६८, नोट । .. अपर्याप्त अवस्था में औपशमिकसम्यक्त्व पाया जा सकता है, यह बात पञ्चसंग्रह में भी है । पु०-७० नोट ।
पुरुषों से स्त्रियों की संख्या अधिक होने का वर्णन पञ्चसंग्रह मे है । पृ०१२५, नोट।
पञ्चसंग्रह में भी गुणस्थानों को लेकर योगों का विचार है । पृ०-१६३,
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गुणस्थान में उपयोग का वर्णन पञ्चसंग्रह में है । पृ०-१६७, नोट ।
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