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जैन धर्म और दर्शन
रखा है। कर्म-शास्त्र को जैन-साहित्य का हृदय कहना चाहिए । यों तो अन्य विषयक जैन ग्रन्थों में भी कर्म की थोड़ी बहुत चर्चा पाई जाती है पर उसके स्वतंत्र ग्रन्थ भी अनेक हैं । भगवान् महावीर ने कर्मवाद का उपदेश दिया । उसकी परम्परा अभी तक चली आती है, लेकिन सम्प्रदाय-भेद, सङ्कलना और भाषा की दृष्टि से उसमें कुछ परिवर्तन अवश्य हो गया है ।
१. सम्प्रदाय भेद - भगवान् महावीर का शासन श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दो शाखाओं में विभक्त हुआ । उस समय कर्मशास्त्र भी विभाजित सा हो गया । सम्प्रदाय भेद की नींव, ऐसे वज्र-लेप भेद पर पड़ी है कि जिससे अपने पितामह भगवान् महावीर के उपदिष्ट कर्म-तत्त्व पर, मिलकर विचार करने का पुण्य अवसर, दोनों सम्प्रदाय के विद्वानों को कभी प्राप्त नहीं हुआ । इसका फल यह हुआ कि मूल विषय में कुछ मतभेद न होने पर भी कुछ पारिभाषिक शब्दों में, उनकी व्याख्यानों में और कहीं-कहीं तात्पर्य में थोड़ा बहुत भेद हो गया, जिसका कुछ नमूना पाठक परिशिष्ट में देख सकेंगे — देखो, प्रथम कर्मग्रन्थ का परिशिष्ट ।
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२. संकलना - भगवान् महावीर के समय से अब तक में कर्मशास्त्रकी जो उत्तरोत्तर संकलना होती आई है, उसके स्थूल दृष्टि से तीन विभाग बतलाये जा सकते हैं ।
( क ) पूर्वात्मक कर्मशास्त्र - यह भाग सबसे बड़ा और सबसे पहला है । क्योंकि इसका अस्तित्व तब तक माना जाता है, जब तक कि पूर्व-विद्या विच्छिन्न नहीं हुई थी । भगवान् महावीर के बाद करीब ६०० या १००० वर्ष तक क्रमिक - ह्रास - रूप से पूर्व विद्या वर्तमान रही । चौदह में से आठवाँ पूर्व, जिसका नाम 'कर्मप्रवाद' है वह तो मुख्यतया कर्म-विषयक ही था, परन्तु इसके प्रतिरिक्त दूसरा पूर्व, जिसका नाम 'अप्रायणीय' है, उसमें भी कर्म तत्त्व के विचार का एक 'कर्मप्राभृत' नामक भाग था । इस समय श्वेताम्बर या दिगम्बर के साहित्य में पूर्वात्मक कर्मशास्त्र का मूल अंश वर्तमान नहीं है ।
(ख) पूर्व से उद्धृत यानी आकररूप कर्मशास्त्र - यह विभाग, पहले विभाग से बहुत छोटा है तथापि वर्तमान अभ्यासियों के लिए वह इतना बड़ा है कि उसे कर कर्मशास्त्र कहना पड़ता है । यह भाग, साक्षात् पूर्व से उद्धृत है ऐसा उल्लेख श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनों के ग्रन्थों में पाया जाता है । पूर्व में से उद्धृत किये गए कर्मशास्त्र का अंश, दोनों सम्प्रदाय में अभी वर्तमान है । उद्धार के समय संप्रदाय भेद रूढ़ हो जाने के कारण उद्धृत अंश, दोनों सम्प्रदायों में कुछ भिन्न-भिन्न नाम से प्रसिद्ध हैं । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में १ कर्मप्रकृति, २ शतक,
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