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कर्मशास्त्र ।
२२१ ३ पञ्चसंग्रह और ४ ससतिका ये चार ग्रंथ और दिगम्बर सम्प्रदाय में १ महाकर्मप्रकृतिप्राभृत तथा २ कषायप्राभूत ये दो ग्रन्थ पूर्वोद्धृत माने जाते हैं।
(ग)प्राकरणिक कर्मशास्त्र-यह विभाग, तीसरी संकलना का फल है इसमें कर्म-विषयक छोटे-बड़े अनेक प्रकरण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इन्हीं प्रकरण ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन इस समय विशेषतया प्रचलित है। इन प्रकरणों को पढ़ने के बाद मेधावी अभ्यासी 'पाकर ग्रन्थों' को पढ़ते हैं। 'पाकर ग्रन्थों' में प्रवेश करने के लिए पहले प्राकरणिक विभाग का अवलोकन करना जरूरी है। यह प्राकरणिक कर्मशास्त्र का विभाग, विक्रम की आठवी-नववीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी तक में निर्मित व पल्लवित हुआ है।
३. भाषा-भाषा-दृष्टि से कर्मशास्त्र को तीन हिस्सों में विभाजित कर सकते हैं--(क ) प्राकृत भाषा में, (ख) संस्कृत भाषा में और (ग) प्रचलित प्रादेशिक भाषाओं में।
(क) प्राकृत-पूर्वात्मक और पूर्वोद्धृत कर्मशास्त्र, इसी भाषा में बने हैं। प्राकरणिक कर्मशास्त्र का भी बहुत बड़ा भाग प्राकृत भाषा ही में रचा हुआ मिलता है। मूल ग्रन्थों के अतिरिक्त उनके ऊपर टोका-टिप्पणी भी प्राकृत भाषाओं में हैं।
(ख ) संस्कृत--पुराने समय में जो कर्मशास्त्र बना है वह सब प्राकृत ही में है, किन्तु पीछे से संस्कृत भाषा में भी कर्मशास्त्र की रचना होने लगी। बहुत कर संस्कृत भाषा में कर्मशास्त्र पर टीका-टिप्पण आदि ही लिखे गए हैं, पर कुछ मूल प्राकरणिक कर्मशास्त्र दोनों सम्प्रदाय में ऐसे भी हैं जो संस्कृत भाषा में रचे हुए हैं। __ (ग ) प्रचलित प्रादेशिक भाषाएँ-इनमें मुख्यतया कर्णाटकी, गुजराती
और राजस्थानी-हिन्दी, तीन भाषाओं का समावेश है। इन भाषाओं में मौलिक ग्रन्थ नाम मात्र के हैं। इनका उपयोग, मुख्यतया मूल तथा टीका के अनुवाद करने ही में किया गया है। विशेषकर इन प्रादेशिक भाषाओं में वही टीका-टिप्पणअनुवाद अादि हैं जो प्राकरणिक कर्मशास्त्र-विभाग पर लिखे हुए हैं । कर्णाटकी और हिन्दी भाषा का प्राश्रय दिगम्बर साहित्य ने लिया है और गुजराती भाषा श्वेताम्बरीय साहित्य में उपयुक्त हुई है।
। आगे चलकर 'श्वेताम्बरीय कर्म विषयक ग्रंथ' और 'दिगम्बरीय कर्मविषयक ग्रन्थ' शीषक दो कोष्ठक दिये जाते हैं, जिनमें उन कर्मविषयक ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण है जो श्वेताम्बरीय तथा दिगम्बरीय साहित्य में अभी वर्तमान हैं या जिनका पता चला है-देखो, कोष्ठक के लिए प्रथम कर्मग्रन्थ ।
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