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________________ कर्मवाद . २१६ इस प्रकार के विश्वास में भगवान महावीर को तीन भूलें जान पड़ीं(१) कृतकृत्य ईश्वर का बिना प्रयोजन सृष्टि में हस्तक्षेप करना । (२) आत्म-स्वातंत्र्य का दब जाना। (३) कर्म की शक्ति का अज्ञान।। इन भूलों को दूर करने के लिए व यथार्थ वस्तुस्थिति बताने के लिए भगवान् महावीर ने बड़ी शान्ति व गम्भीरतापूर्वक कर्मवाद का उपदेश दिया। २-- यद्यपि उस समय बौद्ध धर्म भी प्रचलित था, परन्तु उसमें भी ईश्वर कत्तत्व का निषेध था । बुद्ध का उद्देश्य मुख्यतया हिंसा को रोक, समभाव फैलाने का था। उनकी तत्त्व-प्रतिपादन सरणी भी तत्कालीन उस उद्देश्य के अनुरूप ही थी। बुद्ध भगवान् स्वयं, 'कर्म और उसका २विपाक मानते थे, लेकिन उनके सिद्धान्तमें क्षणिकवाद को स्थान था। इसलिए भगवान महावीर के कर्मवाद के उपदेश का एक यह भी गढ़ साध्य था कि 'यदि अात्मा को क्षणिक मात्र नाम लिया जाए तो कर्म-विपाक की किसी तरह उपपत्ति हो नहीं सकती। स्वकृत कर्म का भोग और परकृत्त कर्म के भोग का अभाव तभी घट सकता है, जब कि आत्मा को न तो एकान्त नित्य माना जाए और न एकान्त क्षणिक । ३-अाजकल की तरह उस समय भी भूतात्मवादी मौजूद थे। वे भौतिक देह नष्ट होने के बाद कृतकर्म-भोगी पुनर्जन्मवान् किसी स्थायी तत्त्व को नहीं मानते थे यह दृष्टि भगवान महावीर को बहुत संकुचित जान पड़ी। इसी से उसका निराकरण उन्होंने कर्मवाद द्वारा किया । कर्मशास्त्र का परिचय यद्यपि वैदिक साहित्य तथा बौद्ध साहित्य में कर्म संबन्धी विचार है, पर वह इतना अल्प है कि उसका कोई खास ग्रन्थ उस साहित्य में दृष्टि-गोचर नहीं होता। इसके विपरीत जैनदर्शन में कर्म-संबन्धी विचार सूक्ष्म, व्यवस्थित और अतिविस्तृत हैं । अतएव उन विचारों का प्रतिपादक शास्त्र, जिसे 'कर्मशास्त्र' या 'कर्म-विषयक साहित्य' कहते हैं, उसने जैन-साहित्य के बहुत बड़े भाग को रोक १. कम्मना वत्तती लोको कम्मना वत्तती पजा । कम्मनिबंधना सत्ता रथस्साणीव यायतो॥ -सुत्तनिपात, वासेठसुत्त, ६१ । २. यं कम्मं करिस्सामि कल्याणं वा पापकं वा तस्स दायादा भविस्सामि। --अंगुत्तरनिकाय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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