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जैन धर्म और दर्शन 'प्रतिक्रमण' पर होने वाले आक्षेप और उनका परिहार__ 'आवश्यक-क्रिया' की उपयोगिता तथा महत्ता नहीं समझनेवाले अनेक लोग उस पर आक्षेप किया करते हैं । वे श्राक्षेप मुख्य चार हैं। पहला समय का, दूसरा अर्थ-ज्ञान का, तीसरा भाषा का और चौथा अरुचि का।
(१) कुछ लोग कहते हैं कि 'श्रावश्यक-क्रिया' इतनी लम्बी और बेसमय की है कि उसमें फँस जाने से घूमना-फिरना और विश्रान्ति करना कुछ भी नहीं होता । इससे स्वास्थ्य और स्वतन्त्रता में बाधा पड़ती है। इसलिए 'श्रावश्यक-क्रिया' में फँसने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा कहनेवालों को समझना चाहिए कि साधारण लोग प्रमादशील और कर्त्तव्य-ज्ञान से शून्य होते हैं। इसलिए जब उनको कोई खास कर्त्तव्य करने को कहा जाता है, तब वे दूसरे कर्त्तव्य की महत्ता दिखाकर पहले कर्तव्य से अपना पिण्ड छुड़ा लेते हैं और अन्त में दूसरे कर्त्तव्य को भी छुड़ा देते हैं। घूमने-फिरने आदि का बहाना निकालनेवाले वास्तव में आलसी होते हैं। अतएव वे निरर्थक बात, गपोड़े आदि में लग कर 'आवश्यकक्रिया' के साथ धीरे-धीरे घूमना-फिरना और विश्रान्ति करना भी भूल जाते हैं । इसके विपरीत जो अप्रमादी तथा कर्त्तव्यज्ञ होते हैं, वे समय का यथोचित उपयोग करके स्वास्थ्य के सब नियमों का पालन करने के उपरान्त 'आवश्यक' आदि धार्मिक क्रियाएँ को करना नहीं भलते । जरूरत सिर्फ प्रमाद के त्याग करने की और कर्तव्य का ज्ञान करने की है।
(२) दूसरे कुछ लोग कहते हैं कि 'श्रावश्यक-क्रिया' करनेवालों में से अनेक लोग उसके सूत्रों का अर्थ नहीं जानते । वे तोते की तरह ज्यों का त्यों सूत्र मात्र पढ़ लेते हैं। अर्थ ज्ञान न होने से उन्हें उस क्रिया में रस नहीं पाता है। अतएव वे उस क्रिया को करते समय या तो सोते रहते या कुतूहल आदि से मन बहलाते हैं । इसलिए 'आवश्यक-क्रिया' में फँसना बन्धन-मात्र है । ऐसा आक्षेप करने वालों के उक्त कथन से ही यह प्रमाणित होता है कि यदि अर्थ-ज्ञान-पूर्वक 'आवश्यक-क्रिया' की जाय तो सफल हो सकती है । शास्त्र भी यही बात कहता है। उसमें उपयोग पूर्वक क्रिया करने को कहा है। उपयोग ठीक-ठीक तभी रह सकता है, जब कि अर्थ-ज्ञान हो, ऐसा होने पर भी यदि कुछ लोग अर्थ बिना समझे 'आवश्यक क्रिया' करते हैं और उससे पूरा लाभ नहीं उठा सकते तो उचित यही है कि ऐसे लोगों को अर्थ का ज्ञान हो, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा न करके मूल 'आवश्यक वस्तु को ही अनुपयोगी समझना तो ऐसा है जैसा कि विधि न जानने से किंवा अविधिपूर्वक सेवन करने से फायदा न देखकर
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