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जैन धर्म और दर्शन : यहाँ निर्देश कर देना ही चाहिए कि समन्तभद्र और सिद्धसेन, हरिभद्र' और अकलङ्क, विद्यानन्द और प्रभाचन्द्र, अभयदेव और वादिदेवसूरि तथा हेमचन्द्र
और यशोविजयजी जैसे प्रकाण्ड विचारकों ने जो अनेकान्त दृष्टि के बारे में लिखा है वह भारतीय दर्शन-साहित्य में बड़ा महत्त्व रखता है और विचारकों को उनके ग्रन्थों में से मनन करने योग्य बहुत कुछ सामग्री मिल सकती है। फलितवाद___ अनेकान्त-दृष्टि तो एक मूल है, उसके ऊपर से और उसके आश्रय परविविध वादों तथा चर्चाओं का शाखा-प्रशाखात्रों की तरह बहुत बड़ा विस्तार हुआ है। उसमें से मुख्य दो वाद यहाँ उल्लिखित किये जाने योग्य हैं-एक नयवाद
और दूसरा सप्तभंगीवाद । अनेकान्त-दृष्टि का आविर्भाव आध्यात्मिक साधना और दार्शनिक प्रदेश में हुआ इसलिए उसका उपयोग भी पहले-पहल वहीं होना अनिवार्य था । भगवान् के इर्दगिर्द और उनके अनुयायी प्राचार्यों के समीप जोजो विचार-धाराएँ चल रही थीं उनका समन्वय करना अनेकान्त-दृष्टि के लिए आवश्यक था। इसी प्राप्त कार्य में से 'नयवाद' की सृष्टि हुई। यद्यपि किसीकिसी नय के पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती उदाहरणों में भारतीय दर्शन के विकास के अनुसार विकास होता गया है । तथापि दर्शन प्रदेश में से उत्पन्न होनेवाले नयवाद की उदाहरणमाला भी आज तक दार्शनिक ही रही है। प्रत्येक नय की व्याख्या और चर्चा का विकास हुआ है पर उसकी उदाहरणमाला तो दार्शनिकक्षेत्र के बाहर से आई ही नहीं। यही एक बात समझाने के लिए पर्याप्त है कि सब क्षेत्रों को व्याप्त करने की ताकत रखनेवाले अनेकान्त का प्रथम प्राविर्भाव किस क्षेत्र में हुआ और हजारों वर्षों के बाद तक भी उसकी चर्चा किस क्षेत्र तक परिमित रही?
भारतीय दर्शनों में जैन-दर्शन के अतिरिक्त, उस समय जो दर्शन अति प्रसिद्ध थे और पीछे से जो अति प्रसिद्ध हुए उनमें वैशेषिक, न्याय, सांख्य, औपनिषदवेदान्त, बौद्ध और शाब्दिक-ये ही दर्शन मुख्य हैं। इन प्रसिद्ध दर्शनों को पूर्ण सत्य मानने में वस्तुतः तात्त्विक और व्यावहारिक दोनों आपत्तियाँ थीं और उन्हें बिलकुल असत्य कह देने में सत्य का घात था इसलिए उनके बीच में रहकर उन्हीं में से सत्य के गवेषण का मार्ग सरल रूप में लोगों के सामने प्रदर्शित करना था। यही कारण है कि हम उपलब्ध समग्र जैन-वाङ्मय में नयवाद के भेद-प्रभेद और उनके उदाहरण तक उक्त दर्शनों के रूप में तथा उनकी विकसित शाखाओं के रूप में ही पाते हैं । विचार की जितनी पद्धतियाँ उस समय मौजूद
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