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जैन धर्म और दर्शन विशाखा नाम की अपनी परम उपासिका के सम्मुख तीन प्रकार के उपोसथ का वर्णन किया है-उपोसथ शब्द निग्रन्थ-परंपरा के पौषध शब्द का पर्याय मात्र है-१. गोपालक-उपोसथ, २ निगंठ उपोसथ और ३. आर्य उपोसथ । ___इनमें से जो दूसरा 'निगंठ उपोसथ' है वही निर्ग्रन्थ-परम्परा का पौषध है । यद्यपि बुद्ध ने तीन प्रकार के उपोसथ में से आर्य उपोसथ को ही सर्वोत्तम बतलाया है, जो उनको अपने संघ में अभिमत था, तो भी जब 'निगंठ उपोसथ' का परिहास किया है, उसकी त्रुटि बतलाई है तो इतने मात्र से हम यह वस्तुस्थिति जान सकते हैं कि बुद्ध के समय में निर्ग्रन्थ-परंपरा में भी पौषध-उपोषथ की प्रथा प्रचलित थी। 'अंगुत्तर निकाय के उपोसथ वाले शब्द बुद्ध के मुँह से कहलाये गए हैं वे चाहे बुद्ध के शब्द न भी हों तब भी इतना तो कहा जा सकता है कि 'अंगु त्तर निकाय' को वर्तमान रचना के समय निर्ग्रन्थ उपोषथ अवश्य प्रचलित था और समाज में उसका खासा स्थान था। पिटक की वर्तमान रचना अशोक से अर्वाचीन नहीं है तब यह तो स्वयं सिद्ध है कि निर्ग्रन्थ-परंपरा का उपोषथ उतना पुराना तो अवश्य है । निर्ग्रन्थ-परम्परा के उपोषथ की प्रतिष्ठा धार्मिक जगत् में इतनी अवश्य जमी हुई थी कि जिसके कारण बौद्ध लेखकों को उसका प्रतिवाद करके अपनी परम्परा में भी उपोषथ का अस्तित्व है ऐसा बतलाना पड़ा। बौद्धों ने अपनी परंपरा में उपोषथ का मात्र अस्तित्व ही नहीं बतलाया है पर उन्होंने उसे 'आर्य उपोसथ' कह कर उत्कृष्ट रूप से भी प्रतिपादन किया है और साथ ही निग्रन्थ-परंपरा के उपोषथों को त्रुटिपूर्ण भी बतलाया है । बौद्ध-परंपरा में उपोषण व्रत का प्रवेश आकस्मिक नहीं है बल्कि उसका आधार पुराना है। महावीर-समकालीन और पूर्वकालीन निर्ग्रन्थ-परंपरा में उपोषथ या पौषध व्रत की बड़ी महिमा थी जिसे बुद्ध ने अपने ढंग से अपनी परंपरा में भी स्थान दिया और बतलाया कि दूसरे सम्प्रदायवाले जो उपोषथ करते हैं वह आर्य नहीं है पर मैं जो उपोषथ कहता हूँ वही आर्य है । इसलिए 'भगवती' और 'उपासकदशा' की पौषध विषयक हकीकत को किसी तरह अर्वाचीन या पीछे की नहीं मान सकते।
२) यद्यपि आजीवक-परंपरा में भी पौषध का स्थान होने की सम्भावना होती है तो भी उस परंपरा का साहित्य हमारे सामने वैसा नहीं है जैसा बौद्ध और निर्ग्रन्थ-परंपरा का साहित्य हमारे सामने है । इसलिए पौषध के अस्तित्व के बारे में बौद्ध और निम्रन्थ-परम्परा के विषय में ही निश्चयपूर्वक कुछ कहा जा सकता है। हम जिस 'अंगुत्तर निकाय' का ऊपर निर्देश कर आए हैं उसमें उपोषण के संबन्ध में विस्तृत वर्णन है उसका सक्षिप्त सार यों है- . .
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