________________
उपोसथ-पौध
१०१
पौषधवत का ग्रहण करता है वह किसी एकान्त स्थान में या धर्म-स्थान में अपनी शक्ति और रुचि के अनुसार एक, दो या तीन रोज आदि की समय मर्यादा बाँध करके दुन्ययी सब प्रवृत्तियों को छोड़कर मात्र धार्मिक जीवन व्यतीत करने की प्रतिज्ञा करता है । वह चाहे तो दिन में एक बार भिक्षा के तौर पर शनपान लाकर खा-पी सकता है या सर्वथा उपवास भी कर सकता है । वह गृहस्थयोग्य वेषभूषा का त्याग करके साधु-योग्य परिधान धारण करता है। संक्षेप में यों कहना चाहिए कि पौषधवत लेनेवाला उतने समय के लिए साधु-जीवन का उम्मेदवार बन जाता है ।
गृहस्थों के अंगीकार करने योग्य बारह व्रतों में से पौषध ग्यारहवाँ व्रत कहलाता है । श्रागम से लेकर अभी तक के पौषव्रत का निरूपण अवश्य आता है । उसके आचरण व सेवन की प्रथा भी बहुत प्रचलित है । कुछ भी हो हमें तो यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से पौषधत्रत के संबन्ध में निम्नलिखित प्रश्नों पर क्रमशः एक-एक करके विचार करना है-
( १ ) भ० महावीर की समकालीन और पूर्वकालीन निर्ग्रन्थ-परंपरा में पौषधव्रत प्रचलित था या नहीं ? और प्रचलित था तो उसका स्वरूप कैसा रहा ?
यह एक व्रत है जो समग्र जैनशास्त्र में
(२) बौद्ध और दूसरी श्रमण परंपरात्रों में पौषध का स्थान क्या था ? और वे पौध के विषय में परस्पर क्या सोचते थे ?
( ३ ) पौषधवत की उत्पत्ति का मूल क्या है ? और मूल में उसका बोध शब्द कैसा था ?
( १ ) उपासकदशा नामक अंगसूत्र जिसमें महावीर के दस मुख्य श्रावकों का जीवनवृत्त है उसमें आनन्द आदि सभी श्रावकों के द्वारा पौषधशाला में पौषध लिये जानेका वर्णन है इसी तरह भगवती - शतक १२, उद्देश्य १ में शंख श्रावक का जीवनवृत्त है । शंख को भ० महावीर का पक्का श्रावक बतलाया है और उसमें कहा है कि शंख ने पौधशाला में शन आदि छोड़कर ही पौषध लिया था जब कि शंख के दूसरे साथियों ने शन सहित पौषध लिया था । इससे इतना तो स्पष्ट है कि पुराने समय में भी खान-पान सहित और खान-पान रहित पौषध लेने की प्रथा थी । उपर्युक्त वर्णन ठोक भ० महावीर के समय का है या बाद का इसका निर्णय करना सहज नहीं है । तो भी इसमें बौद्ध ग्रन्थों से ऐसे संकेत मिलते हैं जिनसे यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि बुद्ध के समय में निर्मन्थ-परंपरा में पौषध व्रत लेने की प्रथा थी और सो भी आज के जैसी और वर्णित शंख आदि के पौषध जैसी थी क्योंकि अंगुत्तर निकाय
भगवती आदि में.
में
१ अंगुत्तरनिकाa Vol. I. P, 206
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
बुद्ध ने स्वयं
..
www.jainelibrary.org