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उपोसथ-पौषध. "श्रावस्ती नगरी में कभी विशाखा नाम की उपासिका उपोषथ लेकर बुद्ध के पास आई और एक ओर बैठ गई तब उस विशाखा को संबोधित करके बुद्ध कहते हैं कि "हे विशाखे ! पहला उपोषथ गोपालक कहलाता है। जैसे सायंकाल में ग्वाले गायों को चराकर उनके मालिकों को वापस सौंपते हैं तब कहते हैं कि आज अमुक जगह में गायें चरी, अमुक जगह में पानी पिया और कल अमुक-अमुक स्थान में चरेंगी और पानी पिएँगी इत्यादि । वैसे ही जो लोग उपोषथ ले करके खान-पान की चर्चा करते हैं कि आज हमने अमुक खाया, अमुक पिया और कल अमुक चीज खायेंगे, अमुक पान करेंगे इत्यादि । ऐसा कहनेवालों का अर्थात् उपोषथ लेकर उस दिन की तथा अगले दिन की खान-पान विषयक चर्चा करने वालों का उपोषथ गोपालक उपोषथ कहलाता है । ___“निर्ग्रन्थ श्रमण अपने-अपने श्रावकों को बुलाकर कहते हैं कि हर एक दिशा में इतने योजन से आगे जो प्राणी हैं उनका दंड-हिंसक व्यापार-छोड़ो तथा सब कपड़ों को त्याग कर कहो कि मैं किसी का नहीं हूँ और मेरा कोई नहीं है इत्यादि । देखो विशाखे ! वे निर्ग्रन्थ-श्रावक अमुक योजन के बाद न जाने का निश्चय करते हैं और उतने योजन के बाद के प्राणियों की हिंसा को त्यागते हैं तब साथ ही वे मर्यादित योजन के अन्दर आनेवाले प्राणियों की हिंसा का त्याग नहीं करते इससे वे प्राणातिपात से नहीं बचते हैं । अतएव हे विशाखे ! मैं उन निर्ग्रन्थ-श्रावकों के उपोषथ को प्राणातिपातयुक्त कहता हूँ । इसी तरह, जब वे श्रावक कहते हैं कि मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है, मैं किसी का नहीं हूँ तब वे यह तो निश्चय ही जानते हैं कि अमुक मेरे माता-पिता हैं, अमुक मेरी स्त्री है, अमुक पुत्र आदि परिवार है । वे जब मन में अपने माता-पिता आदि को जानते हैं और साथ ही कहते हैं कि मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं, तब स्पष्ट ही, हे विशाखे ! वे उपोषथ में मृषा बोलते हैं। इस तरह गोपालक और निर्ग्रन्थ दोनों उपोषथ कोई विशेष लाभदायक नहीं हैं। परन्तु मैं जिस उपोषथ को करने के लिए उपदेश करता हूँ वह आर्य उपोषथ है और अधिक लाभदायक होता है। क्योंकि मैं उपोषथ में बुद्ध, धर्म और संघ, शील आदि की भावना करने को कहता हूँ जिससे चित्त के क्लेश क्षीण होते हैं। उपोषथ करनेवाला अपने सामने अर्हत् का आदर्श रख करके केवल एक रात, एक दिवस तक परिमित त्याग करता है और महान् आदर्शों की स्मृति रखता है । इस प्रयत्न से उसके मन के दोष अपने आप दूर हो जाते हैं। इसलिए वह आर्य उपोषथ है और महाफलदायी भी है।
'अंगुत्तर निकाय' के उपर्युक्त सार से हम इतना मतलब तो निकाल ही
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