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________________ निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय 8 निग्रन्थ पन्थ न था । श्रतएव सिद्ध है कि बुद्ध ने थोड़े ही समय के लिए क्यों न हो पर पार्श्वनाथ के निर्ग्रन्थ-संप्रदाय का जीवन व्यतीत किया था । यही सबब है कि बुद्ध जब निग्रन्थ संप्रदाय के आचार-विचारों की समालोचना करते हैं तब निग्रन्थ संप्रदाय में प्रतिष्ठित ऐसे तप के ऊपर तीव्र प्रहार करते हैं । और यही सबब है कि निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के चार और विचार का ठीक-ठीक उसी सम्प्रदाय की परिभाषा में वर्णन करके वे उसका प्रतिवाद करते हैं । महावीर और बुद्ध दोनों का उपदेश काल अमुक समय तक अवश्य ही एक पड़ता है । इतना ही नहीं पर वे दोनों अनेक स्थानों में बिना मिले भी साथ-साथ विचरते हैं, इसलिए हम यह भी देखते हैं कि पिटकों में 'नातपुत्त निग्गंठ' रूप से महावीर का निर्देश आता है । १३ प्राचीन आचार-विचार के कुछ मुद्दे ऊपर की विचार भूमिका को ध्यान में रखने से ही आगे की चर्चा का वास्तविकत्व सरलता से समझ में आ सकता है । बौद्ध पिटकों में आई हुई चर्चाओं के ऊपर से निग्रन्थ सम्प्रदाय के बाहरी और भीतरी स्वरूप के बारे में नीचे लिखे मुद्दे मुख्यतया फलित होते हैं— १ – सामिष - निरामिष आहार - [खाद्याखाद्य-विवेक ] २ - चेलत्व - सचेलत्व ३. - तप ४ - आचार-विचार ५ - चतुर्याम ६ – उपोसथ - पौषध -भाषा-विचार ८ -त्रिदण्ड ह - लेश्या- विचार १० - सर्वज्ञत्व इन्हीं पर यहाँ हम ऐतिहासिक दृष्टि से ऊहापोह करना चाहते हैं । 6 ू - १३. दीघ० सु० २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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